कृष्ण चन्द्र   (_✍️🇮🇳KCSBR_)
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वन्दे कृष्णम् जगतगुरुम्।
Joined 4 December 2024


वन्दे कृष्णम् जगतगुरुम्।
Joined 4 December 2024

"सत्य"
सत्य बोलने से किसी का लाभ हो या ना हो,
पर स्वयं का लाभ अवश्यमेव होता है,
"सत्यमेव जयते" त्रिकाल सत्य है।

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युवा मिलता जब भी हमको,
मन आनन्दित हो जाता है।
कितने सपने आँखों में है,उसके देखो!
है तड़पन आगे बढ़ने की,जिज्ञासा अधिकाधिक है।
इन युवा कन्धों पर होगा,देश प्रगति का गुरुतर भार।
निश्चित ही कर पाएंगे वे,है विश्वास।
मेरे मन में श्रद्धा बहुत है युवा-विषयों में।
करना है कुछ देश के लिये इन युवाओं के साथ मिलकर।
अच्छे युवाओं से सम्पर्क करेंगे, बैठेंगे,कुछ प्लान करेंगे।

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वर्तमान को ठीक किया यदि,
बाकी अच्छा होगा ही।
वर्तमान की बात निराली,
क्षणिक समय का ही साथी।
भूत होते देर न लगती,
भविष्य वर्तमान से बनती।
प्रेरणा पुरुषों की बातें,
ध्यान दिलाती जीवन व्यवहार।
स्व का करें यदि सत्कार,
तभी होगा जीवन का उद्धार।।

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मैं स्वयंसेवक बना !
सौभाग्य जागा,बना स्वयंसेवक।
इसमें कृपा थी "घर की गईया मइया" की,
जिन्होंने मुझे स्वयंसेवक बनाया,
थी दुकान उनकी पशुआहार वाली,
गया था वहाँ पौष्टिक पशुआहार लाने,
सुनाया उन्होंने संघ की महिमा न्यारी,
बताया जहाँ लगती थी "शाखा" प्यारी,
लगाया मेरे पीछे एक गटनायक,
मिले बाद में मुझे शाखा के मुख्यशिक्षक,
शाखा कार्यवाह जी घर आते रहते,
मेरे योग्यता वृद्धि में रहते सहायक,
ना जाने कब घर में होगए सबके प्यारे,
रिश्ता बन गया संघ वालों से बढ़कर,
अपनापन बढ़ रहा दिन दूना रात चौगुना,
ये जन्म-जन्मान्तर का रिश्ता बन चुका है,
ये जीवन संघमय राष्ट्रमय हो चुका है,
था पुण्य कोई पिछले जनम का,
सौभाग्य जागा,बना स्वयंसेवक।

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।।कार्यपद्धति।।

हे अपरिचित बन्धु-बान्धव!
आपका परिचय ; प्राप्त हो ;
कुछ नही बस नाम,काम व धाम सुनना है मुझे।
परिचित होते ही प्रक्रिया चल पड़ती है।
बन जाते हम मित्र,प्यार करने लग जाते,
समय बितते देर न लगती,कब के वर्षों बीते,
याद हैं करते कभी-कभी हम,मिले थे कब हम पहले,
हम थे पहले से स्वयंसेवक,राष्ट्रीय दृष्टि थी अपनी,
मित्र बनें,फिर जुड़े अनेकों,ना जाने कितने हैं,
सबने राष्ट्र प्रथम अपनाया,भारतमाता की जय गाया,
शतक पूर्ण कर रहा "R.S.S.",सर्वेषाम् अविरोधेन,
अपनापन का भाव है पाया,क्या अपना है और पराया,
उदार भाव से सदैव गाया,सम्पूर्ण विश्व को घर सा बनाया।

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तुम्हारी चाह है मुझको,
मिलो एकबार साथी तुम,
किया वादा बहुत हमने,
नही मिलना हुआ अबतक,
नही हम जान पायेंगे,
मुझे ना जान पाओगे,
बिना जाने कोई वस्तु ,है होती अनुपयोगी रे,
बिना नजदीक आये क्या ?
परस्पर समझ पायेंगे।

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रे भाई !
रक्त बहा था,प्राण दिया था,
अपना सर्वस्व दिया था,
एक नही सहस्र बार दिया था,
आन पड़ी आवश्यकता तो पुनः दूँगा मैं,
लड़ा ; स्वत्व बचाया हमने,
धर्म न छोड़ा और नही दी देश की माटी,
इस मिट्टी से प्यार है इतना,
अर्पित सब है पास में जितना,
असली जो थे उन्हीं को काटा, शेष भगाया इस धरती से,
नकली जितने बचे हुए,डर से सलवार किये धारण,
देवल स्मृति की धारा में,हो शुध्द; बुद्ध को कर धारण,
है नही शेष कारण कोई,घर वापस आ,पूर्वज अपना,
हम राम कृष्ण के वंशज हैं,आयातित दूत छोड़ अब तू,
जो भूल हुई थी,कर सुधार,आओ आनन्द से जी ले तू।।

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होठों पर गीत कब और कैसा हो?
सोचा तो प्रश्न खड़ा हो गया!
◆गीत कैसा ?...........
👉१.व्यक्तिगत हित के लिए।
👉२.कुटुम्ब हित के लिए।
👉३.समाज हित के लिए।
👉४.राष्ट्रप्रथम 🇮🇳के लिए।
👉५.सृष्टि के हित हेतु।
१.कर्मण्येवाधिकारस्ते...
२.एक बड़ा परिवार हमारा पुरखे सबके हिन्दू हैं...
३.सब समाज को लिए साथ में आगे है बढ़ते जाना..
४.देश के लिए जियें....
५.पर्यावरण संरक्षण जीवन का ध्येय मेरे....
◆गीत कब ?...........
१.स्वयं के विकास हेतु।
२.कुटुम्ब के संरक्षण हेतु।
३.सामाजिक परिवर्तन हेतु।
४.राष्ट्र के सर्वांगीण उन्नति हेतु।
५.अपने चारों तरफ के वातावरण के शुद्धि हेतु।
भैया! फिल्मों के 99% गीतों ने हमें कु संस्कार दिए और दे रहे।
हमें स्व से सृष्टि तक विकासगामी गीत गुन-गुनाने हैं।
देश की प्रगति में गीत का विशेष महत्व है।
आईए,गाईए....परिणामस्वरूप-
"भारतमाता की जय" होगा।

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हम मनुष्य हैं,बात है पक्की,
क्या केवल हम हीं अधिकारी,
अधिकारी यानी अधिकार प्राप्त,
"जगत" ये क्या केवल मनुष्य मात्र का,
या जड़-चेतन का !
तो शेष क्या, उपभोग वस्तु मात्र है,
नहीं; यह तो संकुचित चिंतन है,
सह अस्तित्व बिना क्या सम्भव जीवन अपना,
हम मनुष्य ने ! सबका जीवन संकट में डाला;स्वार्थ के कारण,
लाभ लिया खूब,भला किया ना,
पाश्चात्य सभ्यता के चक्कर में; कहाँ हम पहुँचे?
"त्यागपूर्ण उपभोग" का सिद्धान्त कहाँ अब?
पश्चिमी कलंकित जीवन ने पृथ्वी का बेड़ा गर्त किया,
जितने भी संकट छायें हैं,है योगदान बड़ा उनका,
पर वैदिक जीवल शैली ही संकट का समाधान है,
प्रति भारतीय कर्तव्य निभाएं hindu way of life का,
भविष्य सुनहरा निश्चित होगा,अनुभव लाखों वर्षों का।

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आइये,करिए शक्ति अर्जन,
बहुत जरूरी, बात है पूरी,
इसके बिना है, सभी अधूरी,
जिस शक्ति से सबकुछ सम्भव,
वह शक्ति आती है कैसे?
व्याप्त है शक्ति चराचर जगत में,
प्राप्ति की पात्रता हो विकसित,
दिनचर्या में शामिल करिए,
ध्यान,योग,व्यायाम,परिश्रम,
स्वेद बहे नित सायं - प्रातः,
बने जितेन्द्रिय शक्ति प्राप्त कर,
शक्ति का उपयोग हो कैसे?
गीता मार्ग दिखाए हमको,
अजेय शक्ति हमसब पाएं।।

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