कृष्ण चन्द्र   (KCSBR)
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नमो नमः
Joined 4 December 2024


नमो नमः
Joined 4 December 2024

दिव्य आभा ; मेरे बाबा का,
मेरे बाबा हैं अति भोला,
जिनकी पूजा सरलतम व सहजतम,
अल्प से खुश होकर,दे देते सबकुछ,
भोले ही रहे,
दुर्भावित जन को अपार देकर :
भाला नही बने ;
अत्यन्त सहज,सर्व सुलभ ,
सबके भोला,किसके नही वे,
जब से जोड़ा रिश्ता उनसे,
सब रिश्ते हो गए छोटे,
मेरी मस्ती का राज ; मेरे बाबा ही हैं,सच में,
माता-पिता की याद तो बहुत ही आती है,
पर बाबा दोनों की कमी पूरी करते रहते हैं,
माँ का जब-जब याद आता ,
तब-तब माँ पार्वती जी का आशीष पाता,
पिता जी जब-जब याद आते ,
तब-तब भोलेनाथ मार्ग सुझाते ।

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ब्रह्ममुहूर्त की बात अलग है,
देवत्व पाने का समय है,
प्रतिदिन की भक्ति हो तत्क्षण,
मिले वही जिसकी चाहत हो,
कुछ उपाय ऐसा हो जाये,
नींद खुले और स्नान हो जाये,
कर पायेंगे प्रतिदिन अच्छा,
ऐसा ही विश्वास हमें है,
विनती मेरी प्रभु से इतना,
यह जीवन सार्थक हो जाये,
पञ्च तत्व की अधम शरीर से,
कुछ अच्छा और बड़ा हो जाये,
प्रभु चरणों का दास रहके,
प्रभु के कार्यों को कर पाउँ,
दास कहाउँ सदा-सदा ही(दास=सदा)

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शान्त रहेंगे जब-जब हम,
सृजन होगा अवश्य बड़ा,
शान्त मन कैसे होगा?
प्रश्न यह सबसे बड़ा !
आस पास के लोग हैं कैसे?
इस पर सब निर्भर होता है,
ऋषि-मुनियों के यज्ञों की रक्षा हित,
प्रभु राम ने निर्विघ्न वातावरण किये थे,
कुपित इन्द्र के दुष्प्रभाव से जब गोकुल विचलित था,
बाल कृष्ण ने गोवर्द्धन धारण कर;
कुपित इन्द्र को शान्त किया था।
शान्ति प्राप्ति में शक्ति आवश्यक;
करें संग्रहित शक्ति सर्वदा;
शक्ति से शान्ति भी मिलता,
शक्ति उपासक हम पहले थे,हैं और आगे भी रहेंगे।

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ईष्ट की कृपा बहुत है हमपर,
जबकि सेवा न कर पाता,
योग्य भक्त बनें हम कैसे,जबतक इच्छा न हो उनकी,
सनातन धर्म का मैं अनुयायी,
परम् सौभाग्यवान हैं हम भी,
जो मिला परिवेश मनोनुकूल ही,
प्रभु से प्रार्थना बस इतनी !
सेवा ले लें इस तन से भी !
सार्थक कर पाऊँ मनुष्य जीवन को,
पशु-पक्षी भी धन्य किये अपने जीवन को,
है मोल न तब तक तन का,
सेवा न हो सके जब तक तन से।

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कुछ "कार्य " होता है ऐसा,
जो व्यर्थ ही रहता है,
पर करें क्या,उसके बिना सार्थक नही होता,
पूरक होते दोनों ही,
जैसे:- गुण-अवगुण,सत्य-असत्य साथ हैं रहते;
नही है " मोल " बिना एक-दूसरे के,
अनुभव ऐसा है अपना;
जहाँ भी दो होते हैं,बराबर कभी नही होते हैं,
पर दोनों ही उपयोगी,
सुयोग्य व सफल उपयोगकर्ता बनें ;
आनन्दित रहेंगे।

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मित्र बड़ा है सब रिश्तों में,
ऐसा मुझको लगता हर-क्षण,
अनुभव कहता बचपन से यह,
आनन्द मिला मित्रों से हर-पल,
जुड़ती जाती समय-समय पर नए-नए मित्रों की टोली,
पर मिठास आती है ज्यादा,
मित्र हैं मिलते,बचपन के जब;
मित्रों का स्वर्णिम इतिहास भी हम पढ़ते हैं,
प्रयास अपना हो ऐसा की;
इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर अपनी मित्रता भी अंकित हो।

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विचार आते बहुत हैं ,
हो कैसे संग्रह उनका ?
सद् विचार आते कब-कब हैं ?
जब हम सद् संगति करते हैं।
विचार=रचावि(रचा विधाता ने विचार को)
सद् विचार नर से नारायण करने की क्षमता है।

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कीमती वस्तु केवल एक है "समय"
ईश्वर ने दिया सबको समान (equal)
पहचान लिया जो भी,जब भी,
वह अपना कीमत जान सका,
अपने समय का मूल्य निर्धारित करने का -
अधिकार अपने पास है,
Value बढाएं अपने समय का स्वयं ही,
तपस्या करनी पड़ती इस हेतु सदा-सर्वदा हमको,
जो भी महत्वपूर्ण हैं दुनिया में अब भी-तब भी,
उन्होंने समय का कीमत सही समय पर था पहचाना,
आग्रह इतना बस ! " अपने समय का मूल्य बढ़ाएं "


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लगता था जो भी बुरा पहले,
है आज भी क्या उतना ही बुरा,
सम्पूर्ण नही होता है बुरा, आंशिक होता ;
क्या मैं भी न था ? थोड़ा सा बुरा।

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अभिभावक मेरे सब ; शान्त सरल हैं ;
भगवान करें ! स्वस्थ एवं दीर्घायु हों !
मिले प्यार एवं आशीर्वाद सदा-सर्वदा मुझे ;
श्रद्धा - प्रगाढ़ होता जाता उनपर ;
जितना निकट आते , जीवन में मेरे ।

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