QUOTES ON #क्या_साहेब

#क्या_साहेब quotes

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18 AUG 2021 AT 7:23

"पूरी जिंदगी पड़ी है हाल जानने को पथिक...
अभी तो सिर्फ़ इम्तिहान की घड़ियां बता दो...।"

#क्या_साहेब

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10 AUG 2021 AT 22:52

"गुजर गया मक्खन का दौर, मशीनों में दही देखता हूं।
खत्म कहां जिजीविषा मेरी,लकड़ियों पे हाथ सेकता हूं।
मौकापरस्त कहां मै, मेहनत ही बेचता हूं।
कद्र कला की नहीं, तभी तो सरेराह बैठता हूं...।"
#क्या_साहेब...

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16 SEP 2021 AT 19:34

रुक सी गई है मेरी मोहब्बत वाली घड़ी की,धड़कने वाली सुई़...।
किसी कुर्ब़त के बाज़ार से लाकर,चाहत वाली बैटरी लगा दे...।
#यादों_की_कसक

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13 SEP 2021 AT 10:51

मै कोई थक तो नहीं गया हूं।
मंजिले मेरी आंखों में है,
बुलंदी पर जाने की आरजू सीने में है,
माना डगर मुश्किल है मेरी,
पर जिंदगी की सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते,
मै कोई रुक तो नहीं गया हूं।।
हां बारिश तूफ़ान राहों में है,
फिसलन भरी खड़ी चढाई भी है,
आंच न आयेगी हौसले पर मेरे,
कदम न रुकते अब आगे बढ़ते बढ़ते,
मै कोई थम तो नहीं गया हूं।।
#क्या_साहेब

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3 OCT 2021 AT 14:17

कौनसी स्याही डालते हो तुम अपनी कलम में...
कागज़ पे लिखते हो, यहां दिल पे छप जाती हैं...
#क्या_साहेब

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7 SEP 2021 AT 16:05

#क्या_साहेब...!
हमने तो ये सोचा था कि...
कुछ सुकून दे कर उनका दर्द हल्का कर दूं।
पर वो क्या जाने जिसने जिंदगी में...
बेवफ़ाई करने के अलावा कुछ भी नहीं सीखा था।।

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16 SEP 2021 AT 8:39

रुक सी गई है मेरी मोहब्बत वाली घड़ी की, धड़कने वाली सुई़...।
किसी कुर्ब़त के बाज़ार से लाकर, चाहत वाली बैटरी लगा दे...।
#यादों_की_कसक

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15 SEP 2021 AT 22:23

हां चांद जानता था आग के गोले की ताकत का राज...
चुनौती दे बैठा चमकता भोर का तारा सूरज को आज...
रहस्यमयअग़्यार केआब-ए-आईना की खबर नहीं मुझे...
होने दे सुबह,देखेंगे..सूरज और उसकी चमक को आज...
#क्या_साहेब

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8 SEP 2021 AT 18:58

बरसों से करते रहे कोशिश हम बिगड़े को बनाने में...
कि क्या पता साथ पाकर वो सही हो जाए।
अरे हम भी कहां उलझ के रह गए साहेब...
जिसकी फितरत में बिगड़ना सुरूर बना कर रखा हो।
#क्या_साहेब

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1 OCT 2021 AT 14:13

तेरी सादगी इतनी खूबसूरत है, फिर सज संवर के क्यों आती हो!
मासूम चेहरा हया की मूरत हैं, फिर परदे में डाल के क्यों छुपाती हो।।

तेरी ख़ामोश अदाएं सब कह देती हैं,फ़िर इतना क्यों बतियाती हो!
हिवड़े की हर आरजू समझ लेती है,फ़िर कसक बनकर क्यों सताती हो।

तेरे रोहिड़े फूल से रूखसार है, फिर लटों में क्यो उलझाती हो!
महकती सांसों में तपिश है, फिर लबों के जाम क्यों पिलाती हो।।

तेरी आरजू नज़र बन्द में है, फ़िर रहस्यमई आंखे क्यों दिखाती हो!
समा में ख़ुद ही जल जाना हैं,फिर परवाने को आग में क्यों गिराती हो।।
#यादों_की_कसक

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