रास्ते में घर ड्राॅप करने के बहाने उसने मुझे कार में अपनी बगल की सीट पर बिठाया। बारिश, वायपर्स और संगीत में अपना एक क्रम था। औपचारिक संबंधों में भी ऐसा ही एक तारतम्य है जिससे यह समाज चलता है वर्ना बारिश का लुत्फ अल्हड़ मस्ती में ही है। मुझे नहीं पता कि उसे कैसे पता था, गाड़ी ठीक मेरी बिल्डिंग के नीचे रुकी। पुनः औपचारिक होते हुए मैंने चाय पी कर जाने के लिए कहा, वो मान गया।
तश्तरी, प्याले और केटली ले कर जब मैं हाजिर हुई तो वो डेस्क पर रखी मेरी तस्वीर में गुम था। मैंने क्रॉकरी की आहट से तंद्रा तोड़ी और प्याले में चाय उड़ेल कर चीनी की मात्रा पूछी। औपचारिक चाय की इस पेशकश से वो पशोपेश में बोले, चाय तो वही अच्छी लगती है जिसमें चीनी पहले ही साथ में उबली हो। मैंने बात मान कर प्याला केटली में पलटना चाहा पर उसने मेरा हाथ पकड़कर कहा अनौपचारिक चाय तक पहुँचने में समय है आज हम इसी से शुरु करते हैं।-
#किस्से चाय के
चाय ने थोड़ा ठण्डे होते ही मलाई की मलमली चादर ओढ़ ली।
मैंने वो चादर उठाई और उसे प्याले की आँखों पर गमछे की तरह बाँध दिया। चाय इस हरकत से सिहरी और सहमी। पर इसी बीच मैंने उसे होंठों से चूम लिया। उसकी गुनगुनाहट सर्दी की धूप की तरह नरम थी। प्याले की पाली चाय मेरे ज़ेहन में जज़्ब हो फ़ना हो रही थी उससे प्याला अंजान नहीं था पर उस पर मेरी जकड़ मजबूत थी। और चाय के होने और न होने के बीच उसके पास आँख पर पट्टी बाँधे रखने के अलावा कोई उपाय न था। मजबूर प्याला इसी ग़म में उसको सहेजकर साफ करने वाले के हाथों फिसल कर सिंक में कूद कर आत्म हत्या की कोशिश करता रहा। इतिहास में कुछ ही ऐसे उदाहरण हैं जब प्याले इस प्रयास में सफल रहे। बहुधा वो फिर-फिर चाय को वैसे ही पालते रहे जैसे मादा कौआ कोयल के अण्डे सेती रहती है और बड़े होते ही वो फुर्र हो जाते हैं।
सतत......-
सूरज का लाल आभा मण्डल पूरब में छाया है, लगा तो कि धरती को चीर कर निकलेगा और गुलदान में सज जाएगा पर देखते ही देखते वो आकाश में बिंदी की तरह स्थिर हो गया है। उबलती चाय की पत्ती देवालय की अगरबत्ती की तरह घर में बिखर रही है। बिस्किट तश्तरी में सजते ही इठलाने लगे और प्रिय मिलन की चाहत में फूले नहीं समाते। दीपक-पतंगे की तरह ही चाय-बिस्किट की प्रेम व्यथा है। गर्म चाय से मिलते ही बिस्किट को अपना सर्वस्व खोना पड़ता है। चाय सामने आते ही मैंने बिना बिस्किट चाय पीने की सोची, मेरा ऐसा सोचना ही था कि हाथ की ठोकर का सहारा ले कर वो कूदे और फर्श पर बिखर गये। चाय जो अब तक प्याले में थी मेरे कण्ठ से सरकने लगी। आवारा पड़े बिस्किट झाड़ू के स्पर्श से बिलख उठे। प्रेम का पूर्ण होना तो दूर उसके अधूरेपन से भी वो आज वंचित रह गए।
सतत...-