ढूँढे से भी सुकून मिलता नहीं अब इस ज़माने में,
बड़े होके बीत रही है ये ज़िन्दगी सिर्फ़ कमाने में।
सोचा करते थे नौकरी मिलेगी तो खूब ऐश करेंगे,
नौकरी मिलते ही लग गए जिम्मेदारी निभाने में।
अकेले रो लेते हैं ख़ुद ही ख़ुद को चुप करा लेते है,
अपने ही कसर नहीं छोड़ते हैं अब यहाँ रुलाने में।
किसी को किसी के दर्द से कोई वास्ता नहीं यहाँ,
समझदारी नहीं हाल-ए-दिल अब यहाँ बताने में।
गलत रास्ते से भी परहेज़ नहीं बस पैसे कमाने हैं,
आगे निकलना हैं लगें हैं एक-दूसरे को गिराने में।
आज़ाद ख़्याल सुन सको तो सुनो कहें "पुखराज"
रूह की परवाह नहीं लगें हैं सब चेहरा सजाने में।-
गा उठा मेरा मूक भाव
आत्मा में गूँजा प्रेम-राग
हो गया मुग्ध मेरा अधीर
तू शीतल वात बन आई
ये जग विस्मय से निर्मित
पथिक आते जाते नित
मेरे हर लहर में अँक सी
मर्म छिपा है तेरे होने का
करूणकाव्य जैसे लिख दिया
मधुर सँगीत सी मेरे ह्रदय में
तृप्त हुआ मेरी रुह का हर कोना
साँसों में भर दिया मादक मधु-रस।-
हर औरत की ज़िन्दगी ही यहाँ प्रेरणा और हौसलों की कहानी है,
औरत का तो पूरा जीवन ही त्याग, समर्पण की अद्भुत निशानी है।
औरतों ने मुश्किलों से लड़-लड़कर ही तो जीवन जीना सीखा है,
कभी हार नहीं मानना सिखातीं हमको उनके जीवन की रवानी है।
अपना पेट काट कर भी औरत अपने बच्चों को भरपेट खिलाती,
हरदम ही हंसती-मुस्कुराती रहें भले ही उसकी आँखों में पानी हैं।
हौसलों की जीती-जागती ऐसी मिसाल दूजी नहीं देखीं दुनिया में,
पर बड़े दुःख की बात ये औरत का तो हर दौर ही रहा इम्तिहानी है।
औरत को पैरों की जूती समझने वालों बदलों अपनी मानसिकता,
उनके सहारे बिन जीकर देखो पाओगे फ़िर ना कोई रुत सुहानी है।
औरत की परीक्षाएँ होती ही रही हैं यहाँ हर दौर में कहें "पुखराज"
पर अफ़सोस हर परीक्षा में अव्वल आ-कर भी उम्र तन्हा गुज़ारी है।-
मीठास मोहब्बत की बनी रहें बरकरार यूँ ही ताउम्र,
यह ज़िन्दगी बीतें तेरी बाहों में सरकार यूँ ही ताउम्र।
ऐसी कोई ख़ुशी ना चाहिए जिससे दिल तेरा दुखे,
एक-दूजे की रहें हर मोड़ पे दरकरार यूँ ही ताउम्र।
मुश्किलें तो आयेगी ही मिल-कर लड़ लेंगे हर जंग,
हमारे रिश्ते में रहें खुशियों की भरमार यूँ ही ताउम्र।
तुझ संग पतझड़ का मौसम भी बसंत सा लगता है,
तुझ संग देखूँ हर रूत सुहानी हर-बार यूँ ही ताउम्र।
एहसास कम ना हो कभी दरमियान हमारे "पुखराज"
चढ़ता ही रहें इस मोहब्बत का खूमार यूँ ही ताउम्र।-
मुझे तो इन फूलों की तरह जीना है,
दुःख, दर्द सहकर भी मुस्कुराते हुए।
मुझे तो फूलों की तरह खिलना है,
सदाचार से यह जीवन महकाते हुए।
मुझे तो फूलों की तरह महकना है,
नेकी कर दिलों में जगह बनाते हुए।
मुझे तो फूलों की तरह झुकना है,
चलना है राहों पे शीश झुकाते हुए।
मुझे तो फूलों की तरह खिलना है,
मन में सकारात्मकता अपनाते हुए।
फूलों सा नज़रिया हो कहें "पुखराज"
अपनी अच्छाई की खुशबू फैलाते हुए।-
सच को यहाँ पे हरदम परेशान, जूझता देखा,
झूठ जुगाड़ू, बेशर्म पर सच को तोलता देखा।
ताकतवर नंगा नाचे समाज बना मूक दर्शक,
ग़रीब की ग़लती पर गूंगे को भी बोलता देखा।
सच्चाई, इँसानियत को समाज नजरंदाज करें,
दौलत के आधार पर इँसान को नापता देखा।
ठेकेदार करें तो सही आम आदमी करें ग़लत,
एक ही बात पे समाज का रवय्या जुदा देखा।
चेहरा देख तिलक करें समाज कहें "पुखराज"
बिन पैंदे के लोटे सा ये समाज लुढ़कता देखा।-
वो बचपन के खेल पुराने हैं मुझे याद आज़ भी,
उन्हें याद करके मन हो जाता है शाद आज़ भी।
अब वो गुड्डे-गुड़ियों, राजा-रानी के खेल कहाँ हैं,
उस बचपन का तो है यह दिल मुराद आज़ भी।
वो बेफ़िक्री वो मस्ती सुहानी शामें याद आती है,
महसूस कर लेते हैं ज़ेहन में वो स्वाद आज़ भी।
खेल गिल्ली डंडा, छिपन-छिपाई के दिखते नहीं,
लौट आए वो दिन करें दिल फ़रियाद आज भी।
अब बच्चों का बचपन निग़ल रहा है ये मोबाइल,
हम भूलें नहीं उन ख़ुशियों का अनुवाद आज़ भी।
अब तो वक़्त काट रहे जीवन जीए थे बचपन में,
बच्चा बनने का मन करें करके संवाद आज़ भी।
बेशुमार खुशियाँ थी बचपन में कहें "पुखराज"
बच्चा हो जाऊँ तो हो जाए मन नौशाद आज़ भी।-
कोरे पन्नों पर आकर लेते, अधूरे ख़्वाब ग़ज़ल है,
सुकून का जरिया, अनसुलझे सवालों का हल है।
निराशा मिटाती सोच का दायरा बढ़ा ये समझाती,
हार ना मान दोस्त तेरे हाथ में आने वाला कल है।
बैठे-बिठाए कुछ भी हासिल नहीं होगा जीवन में,
सफ़ल जीवन अनुशासन और मेहनत का फल है।
शारीरिक ताक़त पे काम करने से से क्या फ़ायदा,
दुनिया उसी की ग़ुलाम जिसके पास बुद्धि बल है।
नज़रिया बदलों तो नज़ारे बदल जायेंगे "पुखराज"
यह ज़िन्दगी नहीं कोई ख़्वाबों का झूठा महल है।-
कि अपने वजूद की तलाश में भटक रहा आदमी यहाँ,
जीना भूल कर के घुट-घुट कर मर रहा आदमी यहाँ।
ज़िन्दगी बदलना चाहता है वो पर आदतें नहीं बदलता,
फ़ालतू की बातों में उलझकर अटक रहा आदमी यहाँ।
मुश्किलों से और हालातों से लड़ना सिख लिया उसने,
वक़्त के साथ ढल आगे फ़िर निकल रहा आदमी यहाँ।
बिना लड़े, बिना ठोकरें खाए इँसान इँसान नहीं बनता,
अपनी गलतियों से सीखके ही सँवर रहा आदमी यहाँ।
तेरी तलाश ख़त्म होगी ख़ुद से मिलकर कहें "पुखराज"
पर ये क्या ख़ुद से ही ख़ुद को दूर कर रहा आदमी यहाँ।-
मोहब्बत सिर्फ़ वो नहीं जो किसी को अपना बना ले,
मोहब्बत तो वो है जो फ़िर किसी और का ना होने दें।-