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मैं अपनी भीगी नज़रे चुरा रहा था।
वह बोली, " जा रही हूं भाई,
अब से कमरा सिर्फ तुम्हारा। "-
कछुआ पहले से ऐसा नहीं था। पहले वह भी खुला था। एक दिन एक अनजान चिड़िया कहीं से उड़कर आई। दोनों में बातचीत हुई, दोनों दोस्त बन गए। कछुआ अपनी पीठ पर बिठाकर उसे घुमाता, चिड़िया बहुत हँसती, उसे काफी मजा आता। पर एक दिन चिड़िया उड़ गई, बिना बोले। कछुए को चिंता हुई। वह निकल पड़ा उसे ढूंढने। सारे रास्ते बंद थे पर एक रास्ते पर जा कर उसने चिड़िया को ढूंढ लिया। वह पेड़ पर बैठी हुई थी।
कछुए ने पूछा, " तुम्हे क्या हुआ? "
चिड़िया ने कहा, " मेरा चिड़ा मेरे साथ नहीं था, मैं नाराज़ थी। तभी मुझे तुम मिल गए। बस मुझे कोई चाहिए था। पर अब चिड़ा वापस आ गया है। अब तुम जाओ। "
कछुए को थोड़ा बुरा लगा कि कोई उसका उपयोग कर गया और इस क्रोध में उसके शरीर के रंगसूत्र में ऐसे बदलाव हुए कि उसकी पीठ के ऊपर एक ढाल निकल आई। कछुए की पीठ पर सब बैठ तो पाते पर कोई अब उसे छू नहीं सकता था। उसका अपना सुरक्षा कवच उसने बना लिया था।-
किसी जंगल में दो सियार रहते थे। दोनों साथ रहते, साथ शिकार करते, साथ खाते। पर किसी ना किसी बात पर आए दिन दोनों में अनबन हो जाती। दोनों ने एक दूसरे से ज्यादा बात करना बंद कर दिया। जब रात होती तो दूसरे जंगलों में से अनजान सियारो की आवाज आती। पूरी रात दोनों सियार पूरब और पश्चिम में बैठकर अपने-अपने अनजान सियारो के गाने के साथ गाना गाते रहते और सुकून से सो जाते। बड़ा ही विचित्र होता है सियार!
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जंगल के एक छोर पर एक भेड़ और उसका मेमना रहते थे। मेमना थोड़ा नटखट था पर मासूम था, इधर उधर घूमता रहता। जंगल के कानून की ज्यादा समझ नहीं थी उसे। भेड़ अक्सर उसे कभी प्यार से या कभी डांट से समझाया करती, पर मेमना ज्यादा सुनता नहीं। भेड़ की डांट सुनकर वह चला जाता वहाँ से। ऐसे ही एक दिन वह डांट से नाराज होकर नदी के किनारे जा पहुंचा। वहीं दूसरे किनारे एक भेड़िया बैठा हुआ था। भेड़िए ने मेमने को देखा और उसके मुँह में पानी आ गया पर नदी पार करने की ताकत नहीं थी उसमें। भेड़िए ने मेमने से मीठी मीठी बाते करनी शुरू कर दी। मेमना उसकी चाल समझ ना पाया और उससे दोस्ती कर ली। रोज वह नदी किनारे आता और भेड़िए से बाते करता रहता। भेड़ को भी ये बात उसने ना बताई। आखिरकार एक दिन भेड़िए ने उसे बहकाकर नदी पार करवा ली और जैसे ही मेमना उसके पास आया वह उसे दबोचकर खा गया!
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