QUOTES ON #कलावतीनंदन

#कलावतीनंदन quotes

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टूटे अम्बर की बूंदों को छू कर धरती हरी हुई।
जैसे किरणों की संगत से कमल कुमुदिनी बड़ी हुई ।

जैसे स्वाति के बूंदों से उर चातक के प्यास बुझे।
जैसे भूखा पेड़ों के फल का उन्मद हो स्वाद चखे ।
वैसे ही प्रेम की अविरल गंगा जब मन से बह जाती है ।
सूखे वीराने से दिल को हरित क्रांति दे जाती है ।

जैसे कंकड़ संग पानी एक मधुर गीत को गाती हो।
जैसे पर्वत से गिरकर नदिया झरना बन जाती हो।
बस उसी तरह से मन मेरा तेरी यादों में खिल जाता है।
जैसे देख चकोर चांद को मन ही मन सुख पाता है ।
छन छन जब पायल तेरे पांवों में इठलाती है ।
कानों के कुंडल तेरे पुरवा संग इतराती है ।

जब शीतल ठंड बयार चले मेरी ही तरुणाई में।
तब शरद माह के फूल खिले मेरे ही अंगड़ाई में।
जब पलास के पेड़ों पर सुग्गा के स्वर गूंज उठे ।
तब मेरे इस पागल मन में तुझे पाने की चाह जगे।
तूने अब जो समझ लिए मेरी प्रेम सुधा रस को।
न कर विलंब आजा तुरंत चख लेते है अमृत को।

कह पागल कवि कर जोड़ सखी सांसे बस कुछ पल की हैं।
संगम सरिता सा साथ जोड़ जीवन बस शेष कलश सी हैं।।






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चंदन सी मेरी माटी उड़ती रहे गगन में।
सौंधी सी इसकी खुशबू फैली है मेरे मन में।

इस मिट्टी में है खेले राणा प्रताप, शिव्वा।
करते नमन सभी हैं करती प्रणाम विश्वा।

अमृत रची बसी है मेरे देश की धरा में ।
चंदन सी मेरी माटी उड़ती रहे गगन में ।।

मिट्टी में खेलते हैं मिट्टी में हर खुशी है।
हमको हमारी शोहरत इस भूमि से मिली है ।

यह पुण्य भू धरा है सारे जहां के घर में ।
चंदन सी मेरी माटी उड़ती रहे गगन में ।।

इसकी शान की खातिर पृथ्वी ने खेली होली ।
भगत सिंह ने जान दे दी शेखर ने खाई गोली।

झांसी की गर्जना भी है गूंजती जहाँ में ।
चंदन सी मेरी माटी उड़ती रहे गगन में ।।

हों राम जिसकेआदर्श,जहां कृष्ण खेलते हो
जहां राम कृष्ण हरि जयराम बोलते हों ।

सद्भाव की वो गंगा बहती सदा है मन में ।
चांदी सी मेरी माटी उड़ती रहे गगन में ।।

।। कलावती नंदन।।






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लेकर मेघ से सावन
तुझे मनभावन बना दूँ मैं
बनकर दिल की धड़कन
तुझे जीना सिखा दूँ मैं



तेरे होंठो की परतों पर
गुलाबों की कली रख दूँ
लगे जब प्यास तुमको तो
मैं शबनम की नमी रख दूँ


कृपया शेष कैप्शन में पढ़े

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सावन की ऋतु हो या
फागुन की फुहार हो ।
लगता है सुना सब ,
कितना भी प्यार हो ।
नहीं है नसीब मेरे रहूं उनके करीब रे।
दुनियां में ऐसा कहां मेरा नसीब रे ।।
तुझसे ही जिंदगी में ,
जलता हुआ दीप है ।
तेरे संग महफिल में ,
गजल और गीत है ।
कोइ मिटा दे चाहे, जलते हुए दीप रे ।
प्यार मिल जाए तो , राहों में प्रदीप रे।।
उनसे ही चेहरे पर ,
रौनकें हजार हैं ।
उनसे ही जगमग ,
मेरा संसार है ।
साथ नहीं सजनी तो, लागे नाही नीक रे ।
रतिया कटत नहीं उठे मन में टीस रे ।।

नहीं है नसीब मेरे रहूँ उनके करीब रे ।
दुनियां में ऐसा कहां मेरा नसीब रे ।।





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