जिस दुख को आप समझ नहीं सकते
उनसे होकर गुजरने का पुरा हक है आपको॥-
काश! ऐसा भी कोई दस्तूर हो जाये ...
जो हमें क़बूल हो,वो ख़ुदा को मंज़ूर हो जाये।-
मैं नहीं जानता कि तुम्हारी कहानी में तुम मुझे क्या कहोगे ?
मगर इतना पक्का है कि मेरी वाली में तो दोषी तुम ही रहोगे।-
इस ठंड में कंबल की लपेट में
सारा जग ठीठुरा जब ठंड की चपेट में
कोई होगा जो गेहूं में पानी पलो रहा होगा,
भर के पेट सबका जो खुद रो रहा होगा
प्रजातियां तो तुम्हें मुबारक कृषि के विकास में
गौर करो उसको भी जो बैठा भूख प्यास में
गर्म प्रदेश में या प्रदेश की गर्माहट में
खुशी में हो या अकाल की सुगबुगाहट में
निरंतर परिश्रम का गुण जो सिख लाता है
इन सब से गुजरे तो वह किसान कहलाता है||
इस वर्ग के बिना समाज की कल्पना कैसे करोगे
पेट के ऊपर तो वस्त्र ढ़कोगे , पेट कैसे भरोगे
खुशियां जो सबकी सोचे वही तो सच्चा इंसान कहलाता है
प्रकृति का ऐसा मित्र ही एक किसान कहलाता है||
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लथपथ राहों में भी संभल जाओगे
इस दिल से निकल के किधर जाओगे
अब हाथ थामा है तो थाम कर चलो
नजरे पीछे कर और कितनों को बुलाओगे
यू देख उसे अपनी लटो को सुधार रही हो
गलतफहमियां तो होंगी कितनों को समझाओगे
तुम्हारी शिकायतें दूर करने सभी बैठे हैं यहां
हामी नहीं भर कर और कितनों को लड़वाओगे
बहुतों ने अपना मान ही लिया है तुमको
मर्जी तुम्हारी है तुम किसको अपनाओगे-
बोहोत लाज़िम था तुम्हारा यूँ रूठ कर चले जाना,
बात इंसाफ की थी, तुम्हें गवारा भी कैसे होती ?-
बोहोत कुछ,
हाँ बोहोत कुछ,.. अलग था मुझ में और तुम में,
तुम्हारे पास तो अब भी काफी कुछ तुम्हारा बाकी है
मगर मेरा सब कुछ अब हमारा हो गया है।-
करवाचौथ ऐसे ही मनाना जरूरी है क्या?
मुझे निर्जल दिन बिताना जरूरी है क्या?
सिर्फ तुम्हारी लंबी उम्र ही नहीं ,तुम्हारे स्वास्थ्य और सम्मान की
भी हमेशा कामना करती रहती हूँ,ये सब कुछ समझाने के लिए
मुझे व्रत करके जताना जरूरी है क्या?
मुझे निर्जल दिन बिताना जरूरी है क्या?
मेरी तुम पर कितनी आसक्ति है और-
कितने अनमोल हो तुम मेरे लिए,
ये अब व्रत करके बताना जरूरी है क्या?
मुझे निर्जल दिन बिताना जरूरी है क्या?
तुम जीवन साथी हो मेरे इस बात का कितना नाज़ है मुझको
और कितनी अभिमानित रहती हूँ मैं इस एहसास पे,
ऐसे एहसास का प्रदर्शन करवाना जरूरी है क्या?
मुझे निर्जल दिन बिताना जरूरी है क्या?
सिर्फ एक दिन क्यूँ, हर वक़्त ख़ास है हमारा
प्रफुल्लित रहती हुँ जब जब साथ है तुम्हारा
इस बात को इस तरह बताना जरूरी है क्या?
मेरा यूँ निर्जल सारा दिन बिताना जरूरी है क्या?-
शाम को निकालना सुबह छुप जाना
चाँद का उपक्रम है ये रोजाना
अक्सर इस से बतियाती हुँ
तुम नहीं होते हो तो इस से गप्पे लड़ाती हुँ,
एक बात बताऊं तुम्हें :
तुम आते हो न तो बड़ा इतराते हो. . .
केहना मेरा एक मानते नहीं
ऊपर से रौब और जमाते हो।
ये तुम मेरे सामने ही इतने लापरवाह होते हो
या हमेशा ही इतनी बेफिक्री दिखाते हो?
बुरा बोहोत लगता है सोच कर की फिर जाओगे,
मना लेती हूँ ख़ुद को की जल्द वापस आओगे
जैसे रोज़ शाम से सुबह ये चाँद ढ़लता जाता है
तुम्हारे आने जाने का सिलसिला चलता जाता है
कई बार हँसतीं हुँ अकेले में तुम भी सोचते होंगे
घर पर बात बात में लड़ती रहती हो
और बाहर आता हूँ तो बार बार फोन करती हो!
तुम्हारा हर बार लौट कर मुझ तक आना मेरे लिए त्योवहार है,
तुम्हारा साथ मेरे लिए सदैव अप्रतिम उपहार है।-
तुम पर भरोसा करना ...
मेरा फैसला है,
मुझे सही साबित करना ..
तुम्हारी मर्ज़ी ......— % &-