बदल के हमे उसने इरादा बदल दिया
पहुँचा किनारे तो किनारा बदल दिया ।
पहले लगा हमारा सितारा बदल दिया
इस नाचीज़ का आसमान सारा बदल दिया ।
कभी गुंजता था नाम हमारा गलियों में उनकी
हालात बदलते ही उसने नारा बदल दिया ।
आज देखा उसे किसी को बुलाते हुए
और तो कुछ नही बदला बस इशारा बदल दिया ।
ये तो वही बात हो गई जनाब
के "खत लिखना" बोल के किसी ने ठिकाना बदल दिया ।
"बदलते ज़माने के के साथ बदलना चाहिए"
यही बोल के दस्तूर पुराना बदल दिया ।
ये क्या बात हुई "अमन" के महज़ वक्त बिताने
उस कमबख्त ने वक्त हमारा बदल दिया ।
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छोड़ने आया था वो किवाड़ तक
थी उसकी मरज़ी बस खिलवाड़ तक ।
नदी को ही रहा वफ़ादार वो पत्थर
जबतलक नही पहुँचा पहाड़ तक ।
"जंगल मे बनाया है घर" कहता था
ना उसके शहर मे भी मिला हमें एक जाड़ तक ।
सबकुछ ले लिया मेरा "अमन"
नहीं छोड़ा उसने कबाड़ तक ।
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इस से ज्यादा कोई किसी का क्या होगा ?
के उन्हें पढ़ने का शौख़ है और हमे लिखने का ।
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आज अचानक एक खयाल आया
क्यूँ न पहले कभी ये सवाल आया?
बेबसी मे किसी का छोड़ना काया
किस हिसाब से "ख़ुदकुशी" कहलाया ?
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शिकायत जायज़ थी कुछ चेहरों की
क्यूँ हमने खुद को सबसे दूर कर दिया ?
पहचान खोने की कगार पे खड़ा था "अमन"
और किसी के इश्क ने मशहूर कर दिया ।
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अक्सर साथ मे दिखते थे दोनों
कभी कागज तन्हा दिखा नही ।
ज़ीद्दी थी कागज की तरह
अकेले जीना कलम ने भी सिखा नही ।
उनके दरमियान कुछ हुआ एक दिन
खामोश थी कलम, कागज भी चीखा नही ।
जारी है कागज-कलम का शीतयुद्ध
बहोत दिन हो गए हमने भी कुछ लिखा नहीं ।
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बहस अभिव्यक्ति पे थी और हमसे निकल गया
"जाओ करो वही जो तुम्हारी मर्जी है"।
निशब्द कर दिया उसने मुझे ये कहकर
"अकेले मे आँसू बहाना भी ख़ुदगर्ज़ी है"।
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इज़हार-ए-इश्क का जवाब आया है
"उसकी फितरत दिल तोड़ने वाली" है ।
"पत्थर" कहा है खुद को उसने
और अपनी नजरें चुरा ली है ।
"फिर तो देर हो गई " हमने कहा
हमने तुम्हें मंजिल बना ली है ।
वाकिफ नहीं हमारी शिद्दत से तुम अभी
हमने "पत्थरों" मैं भी जान डाली है ।
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तसल्ली है की मोहब्बत कहा उसने इस रिश्ते को
वरना सीखाते इश्क फुरसत से उनके फरिश्ते को ।
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यही हो कबसे और यहाँ नहीं भी हो
मसला क्या है किस सोच में गुम हो ।
मैं तुम मैं रहूँ ना रहूँ
मेरे ख़्वाबों ख़यालात में तुम हो ॥-