#दोहे #अवधेश_के_दोहे #अवधेश_की_कविता
भूलो अपने भूत को, भूलो कड़वी बात ।
पछताना भी छोड़ दो, भूलो बीती रात ।
देखो अपने लक्ष्य को, उठो करो कुछ कर्म ।
सेवा पूजा भी करो, यही हमारा धर्म ।
मन में तो उठते रहें, लाखों व्यर्थ विचार ।
लोगों से मिलकर करो, अच्छा ही व्यवहार ।
खुश रहने की आदतें, होतीं हैं कुछ खास ।
दुख तकलीफें क्या करें, खुशियाँ हों जब पास ।
खाओ पियो मौज करो, गाओ फ़िल्मी गीत ।
खेलो अपनों संग भी, हार मिले या जीत ।
मन के डर सब त्याग दो, मन पर लगे लगाम ।
दिनचर्या नियमित करो, करो ज़रूरी काम ।
बड़े कहें जो मान लो, हित होगा ये जान ।
रिश्ते भी अच्छे रहें, मिले सदा सम्मान ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 28052021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश-
#दोहे #अवधेश_के_दोहे
फूलों की ख़ुश्बू बहे, हवा चले जिस ओर ।
अच्छाई का हो सदा, दसों दिशा में शोर ।
देखो सबकी गलतियाँ, ले लो इनसे सीख ।
खुद गलती कर सीखने, उम्र पड़ेगी चीख ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 11092021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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#दोहे #अवधेश_के_दोहे
कठिन परीक्षा की घड़ी, आती बारम्बार ।
कड़ी परीक्षा से बचे, जीवन वो बेकार ।
कठिन लड़ाई लड़ रहा, जीवन की हर व्यक्ति ।
सभी के प्रति दयालुता, भाव भरी हो युक्ति ।
स्वयं को यदि हो जानना, करना गहन विचार ।
अपनी स्वयं की सोच पर, नज़र करो सौ बार ।
पास अभी जो वस्तुएं, करें नहीं संतुष्ट ।
मिलने वाली वस्तुएं, उसे करेंगी रुष्ट ।
स्वयं मन उपदेशक है, इसकी रहती चाह ।
परिवर्तन कुछ हो नहीं, कोई भी हो राह ।
मन विपरीत नियम बने, ऐसा ये संसार ।
जीवन मृत्यु दुख दर्द भी, परिवर्तन आधार ।
मन को जो वश में करें, जीते जीवन जंग ।
मन के वश में जो रहे, हारें उसके अंग ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 30052021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश-
#दोहे #अवधेश_के_दोहे #अवधेश_की_कविता #समय
सही समय जब आएगा, दुख भागेंगे दूर ।
घर में सुख की चाँदनी, बिखरेगी भरपूर ।
बात पते की ये बड़ी, समय बड़ा बलवान ।
साथ मिले इसका जिसे, उसका हो गुणगान ।
मूल्य समय का कौन दे, ये तो है अनमोल ।
जीवन के हर लक्ष्य को, इसके बदले तोल ।
हर दिन बस चौबीस ही, घण्टे सबके पास ।
सुनियोजित उपयोग से, पूरी कर लो आस ।
रोके से रुकता नहीं, समय चले दिन रात ।
बारह महिने साल के, हफ़्ते के दिन सात ।
एक सदी सौ वर्ष की, दशक कहें दश वर्ष ।
बारह महिने वर्ष के, जीवन का उत्कर्ष ।
एक माह में तीस दिन, दो पक्षों का माह ।
पन्द्रह दिन के पक्ष दो, चलते अपनी राह ।
चार पहर में दिन बँटा, चार पहर में रात ।
घण्टे मिलते तीन तो, एक पहर की बात ।
ढाई घड़ियों का यहाँ, घण्टा बनता एक ।
साठ पलों की है घड़ी, हर पल होता नेक ।
साठ विपल का एक पल, अनुपल जिसके साठ ।
अनुपल का उपयोग ही, असली पूजा पाठ ।
©इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 12062021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
Awadhesh Kumar Saxena-