QUOTES ON #अवधेश_की_ग़ज़ल

#अवधेश_की_ग़ज़ल quotes

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4 AUG 2020 AT 9:04

#ग़ज़ल
#छिन रहीं रोटियाँ गरीबों से ।

छिन रहीं रोटियाँ गरीबों से ।
पर मदद मिल रही फ़रिश्तों से ।

अब डुबाने लगे यहाँ अपने,
कश्तियाँ डर गईं किनारों से ।

फोन का रोग लग गया ऐसा,
मन उचटने लगा किताबों से ।

हार को जीत में बदलते हम,
अपने पक्के किये इरादों से ।

काम ऐसे किए यहाँ तुमने,
अब बचोगे नहीं सवालों से ।

किस क़दर तंग हो रहे हैं सब,
आपके खोखले उसूलों से ।

आसमाँ में उड़ान भरना हो,
ये हुनर सीख लो परिंदों से ।

अवधेश कुमार सक्सेना-04082020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
7999841475



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24 SEP 2020 AT 16:01

#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल

#पास_में_हमको_बिठाया_कीजिए

पास में हमको बिठाया कीजिए ।
कुछ सुनो फिर कुछ सुनाया कीजिए ।

जब निराशा घेर ले तुमको कभी,
आस का दीपक जलाया कीजिए ।

आपके बिन हम नहीं रह पाएँगे,
यूँ नहीं हमको पराया कीजिए ।

मत लुटाओ आप दौलत इस तरह,
वक्त आड़े को बचाया कीजिए ।

साथ बीबी के रहोगे चैन से,
नाज नखरे भी उठाया कीजिए ।

रात गहरी नींद उड़ती हो कभी,
ख़्वाब में हमको बुलाया कीजिए ।

रो मचल सर पर उठाए आसमाँ,
हाथ झूले में झुलाया कीजिए ।

दूध का हो खून का या प्यार का,
कर्ज़ जो भी हो चुकाया कीजिए ।

इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 24092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश

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20 JUL 2020 AT 8:33

#मुक्तक #क़तआ #शायरी

खूबसूरत है बनाती रूह को ये शायरी ।
दूर रहती शायरों से हर हमेशा कायरी ।
हो वतन की बात या फ़िर प्यार वाले गीत हों,
हल लिखे मसले मिलें मेरी पढ़ो तुम डायरी ।

अवधेश सक्सेना-20072020

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2 DEC 2020 AT 16:05


#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल

लगी है इश्क़ बीमारी, बताओ क्या दवा कर लें ।
शमाँ से ये पतंगे खुद, बचें या फ़िर फ़ना कर लें।

चलें हम पास में उनके, करें दीदार फ़िर उनका,
सजा मंजूर जो वो दें, मग़र हम कुछ ख़ता कर लें ।

बड़े मग़रूर हैं गर वो, ज़रा जाकर उन्हें कह दो,
बड़े मशहूर हम भी हैं, शहर भर में पता कर लें ।

नशे की झील सी उनकी, शराबी सी लगें आँखें,
तमन्ना है कभी इनमें, उतर कर हम नशा कर लें ।

हमें अपना बना कर फ़िर, उन्होंने बेवफाई की,
उन्होनें क्या किया छोड़ो, मग़र हम तो वफ़ा कर लें ।

बड़ी गर्मी भरी दिल में, इसे ठंडा करें कैसे,
झलें हम हाथ का पंखा, ज़रा ठंडी हवा कर लें ।

गरीबों की मदद करना, खुदा की ही इबादत है,
कमाया तो बहुत कुछ है, इसी से कुछ अता कर लें ।

इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना - 03122020
शिवपुरी, मध्य प्रदेश

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6 JUN 2020 AT 20:40

ग़ज़ल
इशारे न होते

मुहब्बत छिपाने इशारे न होते ।
तुम्हारी अदाओं पे हारे न होते ।

परेशाँ अकेला वहाँ चाँद रहता,
अगर आसमाँ में सितारे न होते ।

समंदर भरे हैं लबालब जहाँ के,
हमीं पी चुके थे जो खारे न होते ।

कहाँ से निकलती कहाँ पे ये बहती,
अगर इस नदी के किनारे न होते ।

फँसे बीच में थे कभी हम भँवर में,
वहीं डूबते गर सहारे न होते ।

ज़मीं आसमाँ क्या किसी काम के थे,
अगर हम भी माँ के दुलारे न होते ।

किसी को परेशाँ कहाँ देख पाते,
गरीबी में दिन जो गुजारे न होते ।

अवधेश-06062020

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19 OCT 2020 AT 7:54

#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी

#जल_रहा_था_वो_दिया
मैं बना अच्छा सभी के साथ अच्छा ही किया ।
ज़ख्म दे डाले किसी ने कुछ ने ज़ख्मों को सिया ।

हम झुके आगे सभी के ख़ास इज़्ज़त बख़्शने,
किस कदर बेइज़्ज़ती का पर जहर हमने पिया ।

छोड़ कर हमको अचानक क्यों बना लीं दूरियाँ,
आप तो ऐसे नहीं थे आपने ये क्या किया ।

जिस किसी ने भी वतन के वास्ते जब जान दी,
मर नही सकता कभी भी वो रहे हरदम ज़िया ।

जब तलक मज़बूत थे हम इक जगह पर थे जमे,
पैर उखड़े जो हमारे अब नहीं मिलता ठिया ।

हम वफ़ा करते रहे पर आपने समझा ग़लत,
किस ख़ता का आपने फ़िर इस तरह बदला लिया ।

आँधियाँ चलती रहीं थीं बारिशें होती रहीं,
जो रखा मुंडेर पर था जल रहा था वो दिया ।

इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश

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18 SEP 2020 AT 10:56

#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
#अवधेश_की_शायरी
#हिंदुस्तानी_ग़ज़ल

#आज_बीरान_हैं_जो_शहर_थे_यहाँ

आज बीरान हैं जो शहर थे यहाँ ।
खण्डहर से हुए हैं जो घर थे यहाँ ।

वो वहीं से हमें प्यार करते रहे,
हम मगर आज तक बेखबर थे यहाँ ।

छाँव जिनकी घनी मिल रही थी हमें,
अब नहीं दिख रहे जो शज़र थे यहाँ ।

हाथ खाली हुए बंद धंधे सभी,
था उसे काम जिसमें हुनर थे यहाँ ।

राह मुश्किल बड़ी दूर मंज़िल खड़ी,
हमसफर था नहीं पर सफ़र थे यहाँ ।

झुक गई है कमर झुर्रियाँ पड़ गईं,
देख जर्ज़र हुए जो अज़र थे यहाँ ।

कँपकँपा रहे सर्द दिन थे कभी,
साथ में गर्म से दोपहर थे यहाँ ।

इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना-18092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश

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30 AUG 2020 AT 15:00

#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
मदद मज़लूम की करना ख़ुदा का काम है यारो ।
ख़ुशी बाँटो जहाँ में तुम यही पैग़ाम है यारो ।

मुहब्बत के लिये जीना मुहब्बत के लिये मरना,
ख़ुदा से हो मुहब्बत तो, तुम्हारा नाम है यारो ।

बिना उम्मीद के मिलती, जहां हर चीज है हमको,
उसी के दर पे अब होती, सुबह से शाम है यारो ।

लगाकर अक्ल करने से, सफल सब काम होते हैं,
बिना सोचे करे जो शख़्स, वही नाकाम है यारो ।

उसे मानो उसे पूजो जहां में एक बस वो है,
मिले उससे यहां सबको, खुशी बेदाम है यारो ।

करो खिदमत अगर तुम भी, किसी लाचार रोगी की,
भुला नेकी किया जो भी, यही निष्काम है यारो ।

ग़ज़ल जो लिख रहा हूं मैं, नहीं उसका कोई सानी,
फलक अवधेश का है अब, ये चर्चा आम है यारो

अवधेश सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश

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18 JUL 2020 AT 13:48

ग़ज़ल
सोच से नफ़रत निकल कर जो गई ।

सोच से नफ़रत निकल कर जो गई ।
पाप तब गंगा हमारे धो गई ।

जागना था रात को भी साथ में,
नींद उसको आ गई वो सो गई ।

आपके इस नूर ने जादू किया,
रूह मेरी आप में ही खो गई ।

जब ज़रा घूंघट उठाया आपने,
रोशनी चारों तरफ़ तब हो गई ।

ये सियासत ही हुक़ूमत के लिए,
बीज नफ़रत के यहाँ पर बो गई ।

अवधेश सक्सेना -18072020

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27 JUN 2020 AT 10:35

नज़्म
मैं तो कब से हूँ तैयार

तुम अगर चल दो कदम चार ।
मैं तो कब से हूँ तैयार ।

अवधेश सक्सेना-27062020

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