माई माई चिल्लाती फिरती
कोई न मुझको सहारा दे
बहन बड़ी भाई बड़े
मां के बाद कोई न दूजा माई बने
तानों का मुझ पर वार ये करते
पर मेरा न कोई सम्मान करें
माई माई चिल्लाती फिरती
कोई न मुझको सहारा दे
नहीं जाना मुझे दूजे घर
माई का घर ही मुझे प्यारा लगे
न कोई है मेरी माई जैसा
जो मुझ डूबते को किनारा दे
माई माई चिल्लाती फिरती
कोई न मुझको सहारा दे
-
ईद मिलाद-उन-नबी
इश्क़-ए-नबी को अपने दिल में बसा कर
चला हूॅं सफ़र पे मैं क़याम करुॅंगा मदीना जा कर
ज़ियारत करुॅंगा जब मैं रोज़ा-ए-मुनव्वरा का
तड़प तड़पकर रोऊॅंगा दुआओं के लिए हाथ उठाकर
बहुत खूबसूरत होता है वो मंज़र ईद-ए-मिलाद का
आयेंगे आका करुॅंगा इस्तकबाल पलकें बिछा कर
सारे जहां में जिनका दर्जा आला ओ अवज़ल है खुद
अल्लाह ने भी ज़ाहिर किया अपना महबूब बताकर
मुश्किल कुशा ग़म-ख़्वार हैं वो पैग़म्बरों के सरदार हैं
रब तेरा शुक्र है भेजा मोहम्मद ﷺ का उम्मती बनाकर-
न ज़िक्र कहीं गुलाब का है न ही माहताब का है
ये अहल-ए-शहर में जो शोर है तेरे शबाब का है
सब के होश उड़ ही गए होंगे उनको देख कर
ये किस्सा तो उनका महफ़िल में बेनकाब का है
ये क़ुसूर तेरा कहूॅं मैं या मेरी मोहब्बत का कहूॅं
यहाॅं चारो तरफ चर्चा तेरे हुस्न-ए-लाजवाब का है
न तूने जुर्म-ए-इश्क़ किया न ही कोई गुनाह किया
फिर सुब्ह ओ शाम तुझे फ़िक्र किस अज़ाब का है
मेरी हयात में अब सब बेहतर ही होगा ऐ "हिना"
मुकद्दर में लिखा हर हर्फ़ तुम्हारे निसाब का है-
आज़ादी पा कर भी हम आज़ाद ख़्याल होना भूल गए
जो शहीद हुए वतन के खातिर उन्हें याद करना भूल गए
हुकूमत करने वालों ने ज़हन में ज़हर नफ़रत का घोल दिया
वो कुर्सी बचाने के खातिर इंसान का दर्द बांटना भूल गए
ए वतन के लोगों नफ़रत को छोड़ो पहचानों भाई चारे को
इतना अलग हुए हम इक दूजे से अपना बनाना भूल गए
कोई हिन्दू मुस्लिम नहीं हम सब के सब वतन के रख वाले
जो किया माटी से वादा हम सबने वो वादा निभाना भूल गए
कुछ इस तरह से बंट गए हम अपने अपने मज़हबों में
सुलग रहा है वतन हमारा जिसकी आग बुझाना भूल गए-
तुझ को खो कर बस मैंने इतना जाना है माॅं
हर शख़्स मतलबपरस्त हर रिश्ता बेगाना है माॅं
काश तुझ को बता पाती मैं अपनी तख़्लीफ़
रोते रोते सो जाती हूॅं दिल कितना दीवाना है माॅं
ख़ामोशी इख्तियार कर ली है मैंने इन लबों पर
तेरी बाक़ी औलादों ने मुझे कितना सताया है माॅं
ऐ अल्लाह तू उठा ले मुझे इस बेगानी दुनिया से
हर इॅंसान मेरा हिमायती है छलावा दिखावा है माॅं
"हिना" सब्र रखो यकीं रखो अल्लाह की जात पर
सब का हिसाब होगा हर क़र्ज़ यहीं चुकाना है माॅं-
निगाहों को निगाहों से मिला कर तो देखो
मोहब्बत ही मोहब्बत है आज़मा कर तो देखो
कभी शिकायत नहीं मिलेगी तुम को ऐ हमनशीं
जो दिल में है बात वो कभी बता कर तो देखो
ख़ामोश रख लूंगा मैं अपने लबों को भी
तुम अपने लब मेरे लबों से लगा कर तो देखो
अब तो तन्हा गुज़रती नहीं है ये शब हमसे
सो जायेंगे ख़ामोश आगोश में सुला कर तो देखो
तेरा लम्स-ए-सुकून चाहिए है मुझको ऐ हिना
कभी जिस्म की लगी आग बुझा कर तो देखो-
तेरी यादों का लम्स ज़ेहन को छूकर गुज़र गया
तल्ख़ लफ़्ज़ों का नश्तर जिस्म में जैसे उतर गया
जिस्म-ओ-जाॅं बस उसकी मोहब्बत में गुम था
अब सोचता हूँ कि आखिर वो मंज़र किधर गया
उसी गली में टूटा हुआ इक मकान मेरा भी था
न जाने किस ख़्याल में गुम था जो तेरे घर गया
तन्हा महसूस कर रहा था मैं खुद को उस दिन
शायद सुकून की तलाश में भटक दर-ब-दर गया
दिल तो मेरा शीशे की तरह ही नाज़ुक था ए 'हिना'
अपनों की इक ठोकर से टूट कर बिखर गया-
फूलों में तो हमको बस गुलाब पसंद आया
जब भी देखा उनका चेहरा बेहिसाब पसंद आया
करते हैं लोग न जाने कैसे नकाब से नफ़रत
लुटा बैठे दिल हमें तो निज़ाम-ए-हिजाब पसंद आया
कर दिया कम कपड़ों को हमने एक तरफ़ा यारों
हमें तो वो लम्बा सा लिबास-ए-शहाब पसंद आया
इश्क़ भी किया और जान भी हाज़िर है उनके लिए
कर लिए गुनाह कुबूल उनका अंदाज़-ए-जवाब पसंद आया
कर लो तुम मुझसे भी एक बार मोहब्बत ऐ "हिना"
न पूछो हमसे तुझ में तेरा दिल-ए-मुस्तताब पसंद आया-
मेरी तकदीर
ऐ ग़म-ए-दिल बता ये माजरा क्या है
तेरा दर्द-ए-उल्फ़त से अब वास्ता क्या है
छोड़ दो तुम इन हसीन वादों को मेरे
झूटे वादे हैं सब के सब इसमें नया क्या है
छिन गया सुकून बरसता है ये दिल मेरा
इस इश्क़ ने आखिर मुझको दिया क्या है
आज तक चारागर कोई न जान सका
मौत और दर्द-ए-दिल की दवा क्या है
क्या भरोसा है इस ज़िंदगानी का ए हिना
कोई न जाने मेरी तक़दीर में लिखा क्या है-