अब, क्या लुत्फ़ में गुज़रा है, 'ग़रज़' रात का आलम,
इक वो चाँदनी रात और वही मुलाक़ात का आलम,
गहरी हो जाती है हर दफ़ा इश्क़ तेरे गिले शिकवे से,
वो तेरे रूठने के और मेरे मनाने के 'बात' का आलम..-
दिल से जो भी मांगोगे वो मिलेगा ..
ये बप्पा का दरबार है !!
अरज तो करो यक़ीनन -
तुम खाली हाथ नहीं जाओगे !!-
घर देखा, बाज़ार देखा, बेशुमार देखा,
दो पल जो तुम्हें देखा, मैंने संसार देखा।-
बातें रुक गईं हैं, बातें होती नही हमारी "अरज",
उनके पास वक्त नही है और हमारे पास वजह।-
कहानी की आस में किस्सा बनकर रह गए "अरज",
उम्र बिताने चले थे, महीनों में सिमट कर रह गए हम।-
कहां कुछ ठोस सीखा है हमने अभी तक "अरज",
हम तो वो भी नही लिख पाते जो हम लिखना चाहते हैं।-
जाने किसने तुम्हारे एहसासों को ईंट की भट्ठी में झोंका "अरज",
जिधर देखो उधर तुम ऊंची ऊंची दीवारें खड़े किए जा रही हो।-
बातों का समंदर लिए बैठी है वो "अरज",
और मैं चुपचाप रेत सा उसकी लहरों में भीग जाता हूं।-
गीली मिट्टी सा था इश्क तुम्हारा "अरज",
हम सौंधी खुशबू के चक्कर में फिसल ही गए।-
एक चिड़िया हमारे बरामदे में उड़ कर आ गई "अरज",
उसे निहारने के चक्कर में हम दाना डालना ही भूल गए।-