क्या लिखूं मैं अपने बारे में इक आजाद परिंदा हूं
कोशिश दुश्मनों ने की मारने की,पर फिर भी आज जिंदा हूं।
आशियाना ढूंढ के थक गए सब,वो क्या जाने,
मैं तो अपनों के दिलों का बाशिन्दा हूं।
मेरे दोस्तों के और भी कई दोस्त होंगे,
पर उन सब में मैं उनका चुनिंदा हूं।
कुछ ऐब तो होंगे मुझमें भी पर फिर भी,
अपने किरदार से सबके दिलों में जिंदा हूं।
बस इतना कहूंगा अब मैं अपने बारे में,
अगर मेरे दोस्त सुदामा हैं,तो मैं उनका गोविंदा हूं।-
माना कि आज तू गिरा है,
पर गिर के उठना सीख।
काँटों भरी इन राहों पर,
संभल कर चलना सीख।।-
मैं जहां जाऊं बस तुझे पाऊं
आ मिल तुझमें लिपट जाऊं
समेटुं खुद को इस दुनिया से
तुझमें बस फिर सिमट जाऊं
ख्वाबों में तुम बस आते रहो
इन ख्वाबों में ही खो जाऊं
सुकून है मेरा बस तुमसे ही
तेरी बाहों में सदा को सो जाऊं-
तरस गए हैं हम, तुम्हारी एक झलक पाने को।
कभी खैरियत भी तो पूछो अपने इस दीवाने को॥
कभी कहते थे कि इश्क़ है तुम्हें बस हमसे।
अब छोड़ गए, क्या मैं ही मिला आजमाने को॥
साथ हमेशा देने की कसमें भी खाई थीं कई।
क्या तुमने वो सारे वादे किए थे तोड़ जाने को॥
जब छोड़ना ही था बीच सफर में साथ तुम्हें।
फिर क्यूं दिए इतने सारे ख्वाब हमें सजाने को॥
कभी आओ जो तुम एक लम्हे को पास मेरे।
फिर बताएंगे कितनी शिकायतें हैं तुम्हें सुनाने को॥-
अब तो गुजरता है सारा दिन,मेरा तुम्हारी बातों में
यादें तुम्हारी रुलाती हैं,तन्हा अकेली रातों में
तुम जो हो यूं दूर मुझसे,
मांगुं बस ये दुआ रब से,
कभी आंखें तेरी अब हो नम नहीं
हम मिल ना सके तो कोई गम नहीं
तेरी यादों के साए में मैं धूप सभी सह जाऊंगा
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा.....-
तन्हाई का ये मंजर क्या मुझे मुझसे मिला देगा?
जो ठहर चुका है कहीं मेरे अंदर उसे हिला देगा??
यूं तो सबने कुछ ना कुछ दिया है अपने हिसाब से,
देगा कुछ अच्छा याद रखने या ये भी गिला देगा??-
हर सफर,हर घड़ी बस तेरा साथ चाहिए,
हमेशा मुझे मेरे हाथों में तेरा हाथ चाहिए।
तकलीफ तो बहुत सी हैं ज़िन्दगी में पर,
जो सुकून मिला दे तेरी वो बात चाहिए॥-
हो हालात कैसे भी पर कर्ज चुकाना पड़ता है।
ज़ालिम दुनिया से अपना मर्ज़ छुपाना पड़ता है॥
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ये रातें तुम्हें लगता है कि बड़ी गुमशुम रहती हैं।
अगर पढ़ सको इनको तो बहुत कुछ कहती हैं॥
मिलना चाहोगे तो इनसे तो बड़ी अच्छी दोस्त हैं।
नहीं तो फिर ये अपने आप में ही मेहफूज रहती हैं॥-
काम तो कुछ है नहीं फिर भी फुर्सत नहीं है।
तुम्हें अब शायद हमारी कोई हसरत नहीं है॥
साफ-साफ कह दो तुम्हें जो भी कहना है।
झूठ को छिपाने बहानो की जरूरत नहीं है॥
मिला हो बेहतर हमसे तो बेझिझक बता दो।
क्यों खामखा लेना मुझसे रुखसत नहीं है॥
बिछड़ जाना ही हमारा अब मुनासिब होगा।
दरमियान अब हमारे कोई कुरबत नहीं है॥
खुश रह लेंगे तेरे बगैर, तेरी यादों के सहारे।
हमें भी अब शायद गम-ए-फुरकत नहीं है॥-