बेशाख हो रहा है वो घना वृक्ष
हर डाल टूटती जा रही है
कभी पास बैठके पूछ उससे
क्या चिंता उसे सता रही है
है घना अंधेरा छाया हुआ उसपे
उसके माथे की लकीरें बता रही हैं
कभी पूछ उससे तू,अकेले में
क्यूं आंखें आंसू बहा रही हैं
जिसके कंधे पर बचपन गुजरा है
उंगली पकड़ के चलना सीखा है
उसका सहारा बनने की तेरी बारी
तो तुझे इसमें शर्म क्यों आ रही है-
जब तोड़ना ही रहता है तो फिर क्यूं लोग रिश्ते बनाते हैं,
ना जाने क्यूं कुछ लोग बीच सफर में साथ छोड़ जाते हैं?-
अजीब कश्मकश में जिए जा रहा हूं
हर बार झूठी मुस्कान दिए जा रहा हूं
जो सोचा कि करना है वो मैं करता नहीं
न जाने अब क्या मैं किए जा रहा हूं-
मां है वो, खयाल तो करेगी ही,
गलती पे मेरी,थोड़ा बवाल तो करेगी ही।
हो ले कितना भी गुस्सा किसी बात पर,
खाना खाया कि नहीं,सवाल तो करेगी ही॥-
यहां होकर भी कहीं खोया सा प्रतीत हो रहा हूं।
जमाना आगे बढ़ रहा है और मैं अतीत हो रहा हूं॥— % &-
बेवक्त भी अब कुछ गुनगुनाने लगता हूं
भर जो आती हैं आंखें, मुस्कुराने लगता हूं— % &-
छोड़ के बचपन, जवानी में चले आए।
अब वो दिन कहाँ के माँ अपने हाथों से खिलाए।।-
एक कतरा भी आंसू का नहीं बहाया हमने,
अपना आखरी वादा ऐसे निभाया हमने।
वो था तो सब कुछ सही था,उसके बाद,
हर जगह खुद को ही गलत बताया हमने।
देखकर ख्वाब उनके जलाता फिर ये हमें,
इसलिए आंखों को सारी रात जगाया हमने।
मिलेगा किसी दिन तो बताऊंगा उसको,
वो नहीं मेरा कैसे खुद को समझाया हमने।
लौटेगा नहीं फिर वो अब पुरानी राहों पर,
सच जानकर भी खुद को झुठलाया हमने।-