उन नजारो में भी कुछ ख़ास था......
जहां कभी हमारे आशियाना हुआ करता था!
रात की चांदनी में सुकून और हबाए हमें राह दिखाता था
उन नजारों में भी कुछ ख़ास था!!
उन नजारों में भी कुछ ख़ास था,
जहां वो हमारे पास था
दुनियां से थे हम कुछ बेखबर इतने
की, उन्ही से जुड़ा हर आस था,
उन नजारों में भी कुछ ख़ास था!
अब .......
बीते वो दिन सारे, टूटे हुए है अरमान हमारे
यादों में उनके कुछ यू खोये है......
जैसे खुद को हार के उन्हें पाए हैं!!!
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मंज़िल पाता वही जिसके पास हार स्वीकार कर आगे बढ़ने का हुनर होता है|
वरना कहाँ हर किसी के पास चींटी के जैसा(बार-बार गिरके चढ़ने वाला) जिगर होता है||-
जो गुजर गए लम्हें,
वो वापिस कभी ना आये |
जो कर पाया इनका सदुपयोग,
वो हरगिज नहीं पछताये ||
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,
मनचाहे सांचे में ढल सकते हैं|
जिस रंग में हम रंगना चाहे,
उस रंग में खुद को रंग सकते हैं||-
है ,
क़ुदरत का करिश्मा |
क्या है इसकी समता में,
किससे करें इसकी उपमा ||
है ,
इस ज़मी का जहाँ |
बिन इक-दूजे ,
अधूरी है इनकी दास्ताँ||-
,
कुछ नये ख्वाबों को लेकर |
सूरज फिर से ढलता है ,
रोज नया कुछ देकर ||
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है लक्ष्य मेरा,
खुद से खुद का परिचय कराना।
जो छिपी है प्रतिभा अंदर मेरे,
उसे और अधिक चमकाना।।
है लक्ष्य मेरा,
खुद की अपनी पहचान बनाना ।
जो कहते हैं नाकारा मुझे,
उनको बड़ा कुछ कर दिखाना।।
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बेटी की किस्मत में ही क्यों,
ये रीति जुदाई की आई।
शोभा थी जो अपनी बगिया की,
आज उसने किसी और की बगिया महकाई।।
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,
और पग पग है अड़चनो का बसेरा|
फिर भी रहती है एक उम्मीद ,
कि अस्त होगा एक दिन इन अवरोधों का सबेरा||-