रिश्तो में दीवारें खिंच गईं ,
भौतिक बड़ी मीनारें रच गईं।
स्वार्थ लोलुपता का दिग्दर्शन,
भर गया अपना अंतर्मन!
मतलब ही प्रधान हुआ है,
धन-दौलत संविधान हुआ है!
सहनशीलता अब गुम हुई है,
सत्य सटीक हर बात चुभी है।
माँ-बाबा भी बोझ हुए हैं,
राखी के तोहफ़े व्यर्थ लगे हैं।
शगुन लिफाफ़ा विवाह निपटाते,
'लेना और देना' बस भरमाते।
पत्नी-बच्चों तक ही परिवार,
मेहमान की आमद लगे पहाड़।
जड़ हो गए क्यों घनिष्ठ संबंध,
नेह के नाते बस अनुबंध॥-
संभाल कर रखना सदा!
हमारी गुलाबी यादों को।
बहुत काम आएँगी!
उनींदी बरसाती रातों को।
(रचना अनुशीर्षक में)-
'पाती पिया की अपनी प्रिया को'
*--*--*--*--*--*--*--*--*--*
कितनी आसानी से-
कह जाती हो तुम स्त्रियाँ!
कि कितना कुछ सहती हो,
सीमाओं में बंध जाती हो।
(सम्पूर्ण सृजन अनुशीर्षक में)-
प्रीत नगर की सरहद सी हैं, आँखें प्रेम डगर जैसी हैं!
इस नयन मार्ग तर कर तो प्रेमी, भव से पार होते हैं!
इनके सागर में डूबे जो, उनको मुक्ता-मणियाँ आईं!
समझे न चितवन की भाषा,अक्सर मझधार होते हैं॥-
जब सारा आलम सोता है, ये चुपचाप जग जाते हैं।
अपनी कठिन तपस्या से, श्रम-साहस को अपनाते हैं।
नीलकंठ होकर अभाव का, हलाहल भी पी जाते हैं।
यही सुनहरे पल फिर, स्वर्णिम इतिहास रच जाते हैं।-
मेरे ख़्वाबों को गिले न होते!
तेरे मेरे मिलन के मौसम पर,
प्रेमग्रंथ तक लिख गए होते!
तेरे रूप की पारस से छूकर,
हम लोहे से कंचन हो गए होते!-
आहें भी तेरे इश्क़ में महक सी गई हैं!
तन्हाई में भी जीने की वजह दे गई हैं।
माना कि मोहब्बत तड़पाती तरसाती है,
लेकिन ज़हन को भावों से भर जाती है।
पराया दुःख तभी महसूस होता है,
जब इश्क में कोई संगदिल दिल तोड़ता है।
अरमानों का टूटना ख्वाबों का चटकना,
दिनरात सिसकना कोरे सफ़े भरना!
ये इश्क़िया तोहफे कहाँ सबको मयस्सर हैं!
तेरी याद में जीने को असबाब कितने हैं!!-
फ़ुर्सत का इतवार
हमें कहाँ मुबारक़!
तेरी यादों की मसरूफियत ने,
हर माह इकत्तीस किया है।
क़ैद-ए-हुस्न से आज़ाद हों,
तो ही मना पाएँगे!
इस इश्क ने-
दिन और तारीखों के
जश्न से! महरूम और
अलहदा किया है।-
'औरत : दर्द का रिश्ता'
औरतें अक़्सर दर्द छुपाती हैं…
(रचना अनुशीर्षक में)-
ठहर जा मंज़िल कुछ देर मेरी खातिर
कुछ जिम्मेदारियाँ निभा कर आऊँगा तेरी जानिब!
बहुत से अरमान पाले हुए हैं बरसों!
हैं फर्ज भी ज़रूरी फुर्सत कहाँ है हासिल!
ग़र तू जो ठहर जाए मायूस न करुँगा,
तुमको भी रश्क़ होगा पाकर ऐसा राही!
फ़ख्र-ए -मंजिल से जाएगी नवाज़ी॥
-