खिलाऊं फूल नफरत के,सियासत का मैं जहरीला शजर नहीं..
इंसानियत को कैसे मैं मजहबों मे बांट दूं ,मैं फितरत से इंसा हूं मुनव्वर नहीं..।
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फिजाओं में जो रंग भर दे उसे दोस्त कहते हैं,
जो दोस्त के लिए फ़िज़ा ही बदल दे उसे दोस्त नहीं ज़िन्दगी कहते हैं ।-
हर रोज आती है,नई चुनौतियां लेकर..
ऐ जिंदगी,कभी कोई तोहफा भी ले आया कर..।-
सज़दा किया तुम्ही से
साजिश भी करेंगे,
मोहब्बत भी हुई उन्ही से
जो बेवफाई भी करेंगे-
मेरी बातों-अल्फाजों के तो लोग कायल हैं..
ना जाने रिश्तों में कौन सी चूक हो गई..।-
तेरे संग कितना वक्त गुजारा..
मुश्किल है बता पाना..
लगता ही नहीं मुझको..
कभी तू मुझसे जुदा था..।
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सच और ईमान का तरफदार हूं..
इसलिए कल भी गुनहगार था..
और आज भी गुनहगार हूं..।-
बख्शीश माँगी थी तुमसे तुमने तो तोहफ़ा ही दे दिया,
वफ़ा न सही पर आँसुओं का ये गुलदस्ता क्यों थमा दिया-
एक दिन तितली उड़ी हवा का साथ देने,
फूलों में उलझ कर रह गयी उस हवा के सामने;
चुन ली उसने अलग अपनी भी एक आज़ादी,
भूल गयी उस हवा को जिसने उसे अपनी सांस दी
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