बिछडेपन का लहर आता है
दिल की कमरे में अंधेरा छाया जाता है
रात का अफसाना मन में लहरें बनकर आते हैं
लगता है ए ज़िंदगी मिट्टी में समा गया है।-
आसान नहीं था छुपकर बैठना
आसान नहीं था बातों को सुनना।
आसान नहीं था खुद को रोकना
आसान नहीं था हार मानना।
आसान नहीं था ठोकरें खाना
आसान नहीं था गिरने से बचना।
आसान नहीं था लोगों से मिलना
आसान नहीं था फिर से लड़ना।
आसान नहीं था जीत को पाना
आसान नहीं था यहां तक पहुंचना।-
तुम बिल्कुल इन हवाओं की तरह हो
जिसे चाहती हूँ ,महसूस कर सकती हूँ
मगर पाने की सोच भी नहीं कर सकती।-
हैरान हूं जानकार कि
मरकर भी जिंदा रहते हैैं।
जान ही लिया इस बार कि
स्वाभिमान से बढ़कर कोई नहीं।-
रिश्तों का कोई ठिकाना नहीं जिंदगी के मेले में
हर कोई कभी न कभी गुम हो ही जाता है
लेकिन उनके परछाईं को पीछे छोड़ जाता है
दुनिया की अहसास के लिए।-
यह कहना इतना आसान होता है।
इसका कभी ख्याल ही ना था हमको
जब तक हम खुद इस दर्द के पहेली में खोगए है।-
आज जिस कल को लेके चिंतित हो
वो कल को भी अंधेरों में टक सकता है।
आनेवाला कल भी तो कभी कल ही बन जाता है।
उस आनेवाला कल को सन्नाटे में सूना बनाना है
या फिर कल को बूलकर
आज खुशियों से दिल को भरना है
यह विचार खुद ही कर लेना।-
खो जाती हूं अक्सर खुद की ग़म में
कि कभी तो खुद से मिल लूं सुकून से।
सो जाती हूं मायूसी की सुनसान गोद में
कि रो लूं गरज कर नींदों की खामोशियों में।
ढक जाती हूं अंधेरों में छाया की ओट में
कि खुद को खुद से छुपा लूं तकदीर की रातों में।-
दिल में जब पहाड़ों को छूने की आग हो,
अगर ज़मीन भी तुझे हिला देता है,
तू नहीं गिर सकता -