ए जिंदगी अब और क्या दिखाना बाकी है
तूने इस छोटी उम्र में तजुर्बे हजार दे डाले
खेलने की उम्र में जिम्मेदारी के बोझ दे डाले
अब जब थोड़ा वक्त मिला था खुल के जीने का
तूने इश्क के जख्म दे डाले
ए जिंदगी अब और क्या दिखाना बाकी है
आंखो में आंसुओ की बरसात दे डाले
महफिल में भी रहूं तन्हा वह वजह दे डाले
जब थोड़ा तेज चलने की चाहत में निकली थी
तूने ठोकरों से ठहराव दे डालें
ए जिंदगी अब और क्या दिखाना बाकी है
रातों में भी सुकून ना मिले तूने इतने दर्द दे डाले
भरोसा करने की उम्र में ,धोखा से सामना कर डाले
अब थोड़ा खुद से चलाना था आजाद परिंदे की तरह
तूने समाज के बेड़ियों में जकड़ डाले
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शब्दों में वो कुछ ना बोले
आंखों को कैसे पढ़ते
वो थे नजरो को झुकाए
क्यों हैं मौन पुछ लेती मगर
वो सपनो में थे आए
मौन अधर बस मुस्कुराए
ना जाने क्यों दिल एक बार फिर उनका हो जाए
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कितनी हैरानियां हैं
ना जाने कितनी परेशानियां है
जिंदगी मानो रुकी सी है
दिल ए दिमाग में मानो जंग लगी सी है
किसी का जाना किसी का आना
किसी का बेवजह बात सुनना
लगे जंग में जैसे नमी का आना
आंखों में अश्रु का भर जाना
पर चाहते हुए रो ना पाना
मंजिल का रोज एक कदम और दूर जाना
कितनी खामोशियां हैं
अंदर चल रही बेचैनियाँ है
बातो का तूफान हैं अंदर
लब मानो सन्नाटे में है
किससे कहूं अपनी कहानियां
बस प्रतीक्षा को है प्रतीक्षा .....
ना जाने कितनी नादानियां है
बाहर से देखो कितनी जिम्मेदारियां है
कहीं घूट ना जाऊं
मन के हलचल से मानो सिमटी सासों की डोरियां है
ना जाने कितनी.........-
आंखों में नमी थी
हां कोई कमी थी
यह वक्त गवाह था
इंतजार के बीते हुए घड़ियों कि
दर्द तो था
पर मरहम की कमी थी
आंखों में नमी थी
अहसास के पन्नो में सिमटी जिंदगी
शब्दो के तलाश में
दिख रही उम्मीदों की कमी थी
आंखों में नमी थी
मौसम की सर्द और गर्म एहसास में
मर्ज तो थी
पर दवा की कमी थी
आंखों के नमी थी
किसी के जाने में आने का अहसास तो था
पर वक्त की कमी थी
आंखों में नमी थी
हां कोई तो कमी थी
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नष्ट कर दी जाती है कुछ डायरियां
जो छुपाए रखती हैं राज कई
बिन दोष जलाई जाती है कुछ डायरियां
जो मुक्कमल बात कहती हैं कई
कुछ कविताएं कई दर्दो को समेट कर
कहीं खो जाती हैं रात के अंधेरों की तरह
जैसे मानो लिखी ही ना गई हों
कुछ कहानियां जो पूरा जीवन बयां करती है
लेखक उन्हें समाज के बीच आने से पहले...
कहीं छुपा देता है ....
जैसे मानो उसने उसे लिखा ही ना हो कभी
कई पन्ने कोरे ही रह जाते है
शब्दो के ना होने पर
जैसे एक लेखक अनपढ़ सा हो गया हो
कुछ भावनाओं को बयां करने में
जैसे खुद में ही खो गया हो.....
कई डायरियां बहुत कुछ कह जाती है
पर उसी कारण कहीं खो जाती है....
कुछ डायरियां लिखी तो जाती है पर पढ़ी नहीं जाती
कुछ डायरियां-
मां और पापा
अर्थ दिया आपने
शब्दो का शस्त्र दिया
उंगली पकड़ी तो चलना सीखा
जीवन रेखा में
मेरा कड़ कड़ सींचा
जब जब भटकी
राह प्रशस्त किया आपने
जब आंखों में अश्रु आए मेरे
मेरे काटें आपने ही हटाए
मेरे जीवन को एक नया पड़ाव दिया
मेरी हर इक्षा बिन बोले पूर्ण किया
कलम की ताकत आपने बताई
धन्य हूं मैं जो आप जैसा परिवार मिला मुझको
सुख दुख का साथ मिला मुझको
अपनत्व का अहसास मिला मुझको
बस धन्यवाद करूं तो कम होगा
बस अपने चरणों में रहने देना
जीवन मेरा यूं ही खुशियों से भरने देना
आपके बिन कोई ना
मेरे प्यारे मां पापा...
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सुनो तुम घबराओ नहीं
घाव अपने सरेआम नही दिखाऊंगी
जख्मों को दिखा तेरी बेवफाई नही सुनाऊंगी
टाक लिया है अपने घावों को अपने हाथो
अब तुम्हे कभी ना अपने जहन में लाऊंगी
हालातों से ठहरी थी तेरे जाने से ना रुकी थी
मैं अपने रास्ते खुद बनाऊंगी
तुम्हारे किस्से अब अपने यादों में भी न लाऊंगी
सुनो तुम्हे और इन घावों को मैं भूल जाऊंगी
घबराओ नहीं तेरे नए हमसफर को कुछ ना बताऊंगी
मैं सब कुछ भूल जाऊंगी
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मैं अब भी तुमको लिखती हूं
पहली मुलाकात को अब भी शब्दो मे बुनती हूं
तुझे हर रात ख्वाबों मे भरती हूं
मैं अब भी तुझको लिखती हूं
आईने में खुद को देख अब तारीफे करती हूं
हां मैं अब भी तेरे खातिर सजती हूं
तुझे यादों में रखती हूं
मैं अब भी तुझे लिखती हूं
तेरे वादों से भरे बातो को अब भी जहन में रखती हूं
तू लौटेगा अब भी यह ख्याल रखती हूं
राहों पर अब भी प्रतीक्षा में तेरे पलके बिछाए रखती हूं
मैं अब भी तुझे लिखती हूं
तेरे वो अल्फाज जो मेरे लिए तू कहता था
आज भी अकेले में वो अल्फाज खुद को कहती हूं
अश्रु तो नही निकलते पर मुस्कराहट में तुझको रखती हूं
मैं अब भी तुझे लिखती हूं
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कभी कभी जरूरी है ठहराव
पर उतना ही दुर्लभ है ठहराव
रिश्तों में ठहराव जब आते है
कई रिश्ते भी कम अहमियत का शिकार हो जाते है
और इसी गलतफहमी में तबाह हो जाते है
इश्क में ठहराव जब आता है
अक्सर प्रेमी युगल को अलग कर जाता है
प्यार के किस्सा भी खतम हो जाता है
पर अक्सर जरूरी होता है ठहराव
कई रिश्ते सुधारने के लिए
कई रिश्तों को समझने के लिए
तो कभी कभी किसी को कुछ अहसास कराने के लिए
पर इस भागती दौड़ती दुनिया में
दुर्लभ है सुकून भरा यह ठहराव
आखिर कब समझेगा इंसान यहां
रिश्तों को समेटने के लिए जरूरी है ठहराव
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तुम बेशक चले जाओ
पर जाने की वजह तो बताओ
क्या हुई है खता हमसे
मेरी खता तो बताओ
मानती हूं की तुम बेहतर हो
पर मेरी कमी तो गिनाओ
तुम बेशक चले जाओ
हालातो से बेबस हो अगर
तो मुझसे भी तो हालातो को रूबरू कराओ
पसंद कोई और बन गया हो तो
उस पसंद को बेझिझक मुझे बताओ
नही रोकूंगी तुम्हे
ना किसी से गलत कहूंगी तुम्हे
तुम बेशक चले जाओ
पर जाने की वजह तो बताओ-