वो डायरी पुरानी थी, जो दायरों में बांधी थी
लिखा था उसमें बहुत कुछ और लिखावट भी प्यारी थी
पढ़ न सका कोई उसको वो डायरी हकीकत की कहानी थी
समेट रखा था जिसने पूरा ब्रम्हांड खुद में
उसके शब्दों में महकती कई निशानी थी
वो डायरी पुरानी थी
न जाने क्या क्या उसमें किससे गुजारिश थी
आंखों में पानी या आंखों चमक की जुबानी थी
तारों सी चमकती , चांद की रोशनी थी
या बातों में खोई चुप्पी की कहानी थी
वो डायरी पुरानी थी
माथे पर मानो कुमकुम की रूहानी थी
न जाने गुम कितने सवालों की जानकारी थी
होठों में मुस्कुराहट या रातों में गुम नींदों की गवाही थी
वो डायरी पुरानी थी
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असंगत जिंदगी की असंगत सी कहानी है
कभी हालातों से हारी कभी खुद से हारी है
वो नारी ही नहीं पूरी कहती कहानी है
पनपते परो के कटने की निशानी है
असंगत जिंदगी की असंगत सी कहानी है
कभी गुणवान सीता भी है
कभी मांगी अग्नि परीक्षा की रूहानी है
सत्य हारा है अक्सर यह झूठ की जिंदगानी है
राधा सा प्रेम करती प्रीत की निशानी है
आंखों से आती अश्रु है कि पानी है
असंगत जिंदगी की असंगत सी कहानी है
प्रेम में जलती सती की कुर्बानी है
कही रातों में महकती रातरानी है
असंगत जिंदगी की असंगत सी कहानी है
कभी हालातों से हारी कभी खुद से हारी है-
जानते हो जब पहली मर्तबा तुमसे मिले थे
सोचा न था कि यूं तुम्हारे हो जाएंगे
जब बात हुई थी हमारी वो इश्क का शुरुआती दौर
सोचा न था कि अब बिन बात किए रह न पाएंगे
मनाते है थोड़ा वक्त लिया था मैने पास आने में
पर जानते न थे कि तुम्हारे बिन रह न पाएंगे
हंसते मुस्कुराते यूं दिन गुजरता है
तुम्हारे बिन कैसे वक्त बिताएंगे
हालातों को कैसे बिन तुम्हारे सम्हाल पाएंगे
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सखी सहेली सब भूली
जबसे तुमसे मुलाकात हुई
सारे घड़ियां ना जाने कैसे बीती
जबसे तुमसे बात हुई
रास्ता न जाने कब बिता
जब तुमने पकड़ा हाथ
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तुम पास आते
कुछ हसीन ख्वाब सच कर जाते
तो क्या बात होती
ज्यादे तो ख्वाहिश नहीं मेरी
माथे को चूम लेते
तो क्या बात होती
जेवर का कोई शौख नहीं
मेरी सादगी पसंद आती
तो क्या बात होती
पूरी दुनिया घूमने की चाहत नहीं
चार कदम हाथ पकड़ चल लेते
तो क्या बात होती
कब कहा इश्क करो
बस इज्जत ही देते
तो क्या बात होती
किस्से कहानियों में नहीं पिरोना था खुद को
बस बातों को पिरोते
तो क्या बात होती
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कुछ कपियों के आखरी पन्नों कुछ किताबों में सिमटे है
तेरी मेरी कहानी के चर्चे ,बातों में सिमटे हैं
यक़ीनन मिलना कम है हमारा, जिम्मेदारियों में सिमटे है
आंखों में आंसू आते नहीं,ज़ख्मों के गहराई में सिमटे है
दुख की कमी कहां, चंद खुशियों में सिमटे हैं
बातें हैं तो गहरी हैं, ख़ामोशियों में सिमटे हैं
लिखते तो है सब कुछ,पर ख्यालों में सिमटे हैं
हालातों का रोना है क्यों रोना,तलाश सुकून में सिमटे है
तेरी मेरी कहानी के चर्चे,बातों में सिमटे हैं
हालातों में सिमटे हैं
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हकीकतों में जीने वाले हम
तुम्हारे आने से ख्वाब सजाने लगे थे
कभी न रोने वाले हम
तुम्हारे आने से आंखों से नीर बहाने लगे थे
सब को अपना कहने वाले हम
बस तुमको अपना बताने लगे थे
ख्वाब टूटा
आंखों का नीर सुखा
सब गैर हो गए
मोहब्बत में हम कुछ और हो गए-
मैने खोया है उसको
जिसको मैने चाहा है
लोग कहते हैं अक्सर
तुमने क्या गवाया है
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