Prateeksha Singh   (प्रतीक्षा)
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I'm nothing but with writting I'm everything.....
Joined 27 March 2020


I'm nothing but with writting I'm everything.....
Joined 27 March 2020
5 JUN AT 21:39

सब अलग हो रहा
क्या कुछ गलत हो रहा
जवाब मिला......
नहीं तो....
सब सही तो है. ....
बस थोड़ी मजबूरियां हैं
क्या कुछ कमजोरियां हैं
दुखती नश पर हाथ धरा क्या?
जवाब मिला.....
नहीं तो....
कुछ रिश्ते है निभाने तो है
कुछ नए बनाने तो है
बस संस्कारों की बात है
क्या खोए खुद के विचारों की बात है
कुछ खोया है क्या?
जवाब मिला...
नहीं तो...
रिश्ते का बंधन है
क्या कठपुतली सा जीवन है
हम बस विष को पी रहे हैं
जवाब मिला .....
नहीं तो...
हम तो बस जी रहे हैं
अश्रु को पी रहे है

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4 JUN AT 21:37

बहुत अर्शे से कुछ लिखा नहीं
लिखा नहीं या जिया नहीं
चाहत ख्वाहिश तमन्ना या फिर इबादत
शब्द कई बुने पर किसी ने सुना नहीं
आंखों में नमी थी
खुशी थी या कोई कमी थी
सवाल कई थे जवाब मिला नहीं
हर्ज नहीं हमें उनके रवैए से
काफ़िर हैं हम इश्क में उनको लगता रहा
हम हिफाजत में थे भावनाओं के उनके
खैर मुझे कोई समझा ही नहीं
बहुत अर्शे से कुछ लिखा नहीं
लिखा नहीं या जिया नहीं

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5 MAY AT 7:08

अधिकारों के चादर में लिपटी
न मिले अधिकारों में नारी
अस्तित्व के तलाश में हरदम भटकी है नारी
आश्रित हो तो सवाल हर दम है
करती क्या है नारी
जो खड़े हो जाए अपने पैरों पर
तो सवाल चरित्र पर उठता समझती है नारी
नारीत्व ही वरदान है
पर अभिशापों से घिरी है नारी
करती तो है सब कुछ
पर सवालों से घिरी है नारी
कहता समाज है,
घूंघट जो ले तो संस्कारी है नारी
पर्दा में छिप जाए तो प्यारी है नारी
गलियों पर चुप रहे तो अपनी है नारी
सब कुछ करकर भी आश्रित है नारी
कुछ ऐसे ही दायरों में लिपटी है नारी
खुद के अस्तित्व की तलाश में नारी

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18 APR AT 13:57

वो डायरी पुरानी थी, जो दायरों में बांधी थी
लिखा था उसमें बहुत कुछ और लिखावट भी प्यारी थी
पढ़ न सका कोई उसको वो डायरी हकीकत की कहानी थी
समेट रखा था जिसने पूरा ब्रम्हांड खुद में
उसके शब्दों में महकती कई निशानी थी
वो डायरी पुरानी थी
न जाने क्या क्या उसमें किससे गुजारिश थी
आंखों में पानी या आंखों चमक की जुबानी थी
तारों सी चमकती , चांद की रोशनी थी
या बातों में खोई चुप्पी की कहानी थी
वो डायरी पुरानी थी
माथे पर मानो कुमकुम की रूहानी थी
न जाने गुम कितने सवालों की जानकारी थी
होठों में मुस्कुराहट या रातों में गुम नींदों की गवाही थी
वो डायरी पुरानी थी

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20 MAR AT 12:00

असंगत जिंदगी की असंगत सी कहानी है
कभी हालातों से हारी कभी खुद से हारी है
वो नारी ही नहीं पूरी कहती कहानी है
पनपते परो के कटने की निशानी है
असंगत जिंदगी की असंगत सी कहानी है
कभी गुणवान सीता भी है
कभी मांगी अग्नि परीक्षा की रूहानी है
सत्य हारा है अक्सर यह झूठ की जिंदगानी है
राधा सा प्रेम करती प्रीत की निशानी है
आंखों से आती अश्रु है कि पानी है
असंगत जिंदगी की असंगत सी कहानी है
प्रेम में जलती सती की कुर्बानी है
कही रातों में महकती रातरानी है
असंगत जिंदगी की असंगत सी कहानी है
कभी हालातों से हारी कभी खुद से हारी है

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29 JAN AT 10:44

जानते हो जब पहली मर्तबा तुमसे मिले थे
सोचा न था कि यूं तुम्हारे हो जाएंगे
जब बात हुई थी हमारी वो इश्क का शुरुआती दौर
सोचा न था कि अब बिन बात किए रह न पाएंगे
मनाते है थोड़ा वक्त लिया था मैने पास आने में
पर जानते न थे कि तुम्हारे बिन रह न पाएंगे
हंसते मुस्कुराते यूं दिन गुजरता है
तुम्हारे बिन कैसे वक्त बिताएंगे
हालातों को कैसे बिन तुम्हारे सम्हाल पाएंगे

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27 JAN AT 13:03

सखी सहेली सब भूली
जबसे तुमसे मुलाकात हुई
सारे घड़ियां ना जाने कैसे बीती
जबसे तुमसे बात हुई
रास्ता न जाने कब बिता
जब तुमने पकड़ा हाथ

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20 JAN AT 13:56

तुम पास आते
कुछ हसीन ख्वाब सच कर जाते
तो क्या बात होती
ज्यादे तो ख्वाहिश नहीं मेरी
माथे को चूम लेते
तो क्या बात होती
जेवर का कोई शौख नहीं
मेरी सादगी पसंद आती
तो क्या बात होती
पूरी दुनिया घूमने की चाहत नहीं
चार कदम हाथ पकड़ चल लेते
तो क्या बात होती
कब कहा इश्क करो
बस इज्जत ही देते
तो क्या बात होती
किस्से कहानियों में नहीं पिरोना था खुद को
बस बातों को पिरोते
तो क्या बात होती

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15 JAN AT 14:29

कुछ कपियों के आखरी पन्नों कुछ किताबों में सिमटे है
तेरी मेरी कहानी के चर्चे ,बातों में सिमटे हैं
यक़ीनन मिलना कम है हमारा, जिम्मेदारियों में सिमटे है
आंखों में आंसू आते नहीं,ज़ख्मों के गहराई में सिमटे है
दुख की कमी कहां, चंद खुशियों में सिमटे हैं
बातें हैं तो गहरी हैं, ख़ामोशियों में सिमटे हैं
लिखते तो है सब कुछ,पर ख्यालों में सिमटे हैं
हालातों का रोना है क्यों रोना,तलाश सुकून में सिमटे है
तेरी मेरी कहानी के चर्चे,बातों में सिमटे हैं
हालातों में सिमटे हैं


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15 JAN AT 13:18

खामोशियां मेरी तुम्हे खा जाएगी
जो कहते हो कि बोलती बहुत हो

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