(अनुशीर्षक में पढ़ें,)
बहु बेटी इक समान कहकर,
बहुएं जिंदा जलाई जाती है,
फिर हो न कोई कर्म जली पैदा,
बेटियां कोख में ही दफनाई जाती है,,!!-
खुद के ख्यालों से बेहतर
और कोई ख्याल नहीं,,!
मुझे गम से नवाजे किसी
गैर की मजाल नहीं,,!!
मिलना जुलना, हंसना
हंसाना ही जिंदगी है,!
मैं प्रकृति हूं किरदार पर
मेरे सवाल नहीं,,!!-
अपनों से होकर बेगाना दुनियां दीवानी है,!
जिंदगी के रंग की बस इतनी सी कहानी है,,!!
ज़रुरत भर का तो खुदा, सबको देता है,!
बेपनाह मिले हर किसी की यही परेशानी है,,!!
भूल गए हम वो अपनापन, वो सच्चाई,
बड़ी ख्वाहिशों में गुम हो गई हर चाहत पुरानी है,!
रिश्तों की मिठास में अब कड़वाहट है समाई,
जिंदगी के रंग से मिटती अब अपनत्व की निशानी है,,!!
कभी सोचा न था कि दौलत इतनी अहम हो जाएगी,!
कीमती रिश्ते भी अब लगते अनजाने हैं,,!!
सपनों की दुनिया में जब खो जाते हैं हम,!
तब अहसास होता है कि कितने वीराने हैं,,!!
काश समझ पाते हम इस छोटे से सफर की बात,!
पैसे से नहीं, प्यार से ही भरती है असल जिंदगी में रंग,,!!
हर रंग में हो अपनापन, हर पल में हो मिठास,
तभी तो जिंदादिल लगती ओनम ये खूबसूरत कहानी है,,!!-
अज़ीब सी खुशी थी घर लौटते हुए
थक गया था मैं, परदेश में रहते हुए
वो सारी गलियाँ, चौक चौराहे,
सब के सब बदल चुके थे,
फिर भी कुछ यादें न बदली थी
सब कुछ बदलते हुए।।
उन हवाओं में अपनापन था,
जहाँ गुज़ारा हमने अपना बचपन था,
वो पीपल का पेड़ पुराना, वो बरगद की डाली झुलाना,
होती थी जहाँ हर शाम निराली,
वो अपना मैदान था खाली,
हर याद ताज़ा हो गयी, उन राहों से गुज़रते हुए,
इक अज़ीब सी खुशी थी घर लौटते हुए।
इक सुकून मिला जब घर को आया,
माँ को अपने गले लगाया,
खुशियां इतनी थी, आँखों में आँसू छिप न पाया
भूल गया वो शह़र की सूखी रोटी,
जब देखा माँ को अपने हाथों से खिलाते हुए
इक अज़ीब सी ख़ुशी थी घर लौटते हुए।
वक्त आया, फिर से अपना सामान उठाया,
चल दिया उसी शहर की और,
जो न कभी दिल को भाया,
जिंदगी से ये जंग पुरानी,
खरीद न पाया खुद का बचपन,
लाख पैसा कमाते हुए,
इक अज़ीब सा दर्द था, घर से वापस लौटते हुए।-
आपको खोया आज़ या खुद को खोया हूं मैं,,!
आपकी आवाज में भी खोकर बहुत रोया हूं मैं,,!!— % &-
यूं ही नहीं गिनता अपनी मौत की तारीख़ हूं मैं,!
ऐ ज़िंदगी तेरे हर दोगले चाल से वाकिफ हूं मैं,,!!-
खामोशी अपनाने से इक सीख मिलती है,,
ज़िन्दगी के हर कठिन राह पर जीत मिलती है,,!!-
जानती हो इक बात,
बारिश की बूंदों से,
क्यूं करता हूं मैं प्यार,,
हर इक बूंद में
छिपी तस्वीर तेरी,
मिलने को दिल बेकरार,,
भींग गया फिर इसी ख्वाहिश में,
मैं इस क़दर सनम
जब बारिश हुई ख़त्म,
उतर गया ये खुमार,,
हाय रे हाय कैसा मेरा प्यार,
बारिश की बूंदों से,
करता हूं मैं प्यार,,!!-
हम जिसे चाहते है
उसके इंतज़ार में
सुबह से शाम कर देते है,,
फिर चाहे तन्हाई में ही
क्यूं न गुज़रे सारी
जिंदगी तमाम कर देते है,,!!-