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⏲️ शुरुआत 🌻 हमेशा 🌞 आज होती है।
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वो अमावस्या की रात
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वो अमावस्या की रात
वो भयावह सी रात
जब तूने ठुकराया था
अपने जाने जिगर को
तोड़ डाले थे, वो सारे
वादे और कसमें
जब दफनाया था
तूने मेरे जज़्बात
आज भी कफन
में लिपटा मैं भूला नहीं
तेरी बेवफाई की
वो "सौगात"-
मेरी कलम और मेरा
रिश्ता है बड़ा अलबेला
जैसे सावन का झूलों से
गजरे का फूलों से
बसंत का बहार से
फागुन का फुहार से
दीवाली का दीप से
मोती का सिप से
शिव का त्रिशूल से
गुलाब का शूल से
पौधे का मूल से
वंश का कुल से
ऐसा हीं कुछ रिश्ता है
मेरा मेरी कलम से-
जीने के गूढ़ बताती है
विणा बजा बुलाती है
जीवन के सुर सजाती है— % &-
जब ऐसा लगे कि तुम्हारे चारों
ओर सिर्फ अंधकार ही अंधकार
है तो अपने दिल के दिये को
जलाओ, अब देखो उसकी रोशनी
में संसार कितनी रंग बिरंगी है।
हर तरफ आकर्षण हीं आकर्षण है।
फिजायें बाहें फैलाये तुम्हें अपनी
आगोश में समाने को आतुर हैं।
समा जाओ इनकी आगोश में,
कर लेने दो इन्हें भी इनकी
हसरत पूरी।-
चढ़ने को तो मैं चढ़ गया।
इतना घुमाबदार, इतना
मतलबी होगा इश्क़,
ये देख मैं सिहर गया।
पर अब उतरना भी तो
आसां नहीं है, इश्क़ की सीढ़ी,
चढ़ गया तो चढ़ गया।
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तुम्हारी नादानियों को
इसलिए तो बड़े
बेख़बर हो तुम
संभाल शैतानियों को
अपने ऐ दिल
वरना हम तुझे
दर-ब-दर करते हैं— % &-
वर्ना हम तो सफर
के लिए तैयार थे।
पता नहीं तुम्हारे आसुंओं
की कशिश थी,
या प्यार था तुम्हारा।-