जिम्मेदारियों की सीढ़ियां
चढ़ते चढ़ते आ पहुँचे हैं
ऐसे मक़ाम पर,
की हसरतें अब उतरती
जा रहीं हैं
निचली पायदान पर।
✍ आशीष सिंह-
चलो !! आ जाओ परेशानियों ..........
देख लेते हैं तुम्हें भी ! ..................
अपनों से लड़ कर आया हूँ यहाँ तक
तुम तो गैर हो मुझसे क्या लड़ पाओगी?-
सियाह चश्मगी ओ सफ़्फेद लबास देखे
गुफ़्तगू के अलहदा मिज़ाज़ देखे
ताल्लुक़ात के बदलते हिसाब देखे
✍ आशीष सिंह-
वक़्त का ऐसा दौर आये
मेरी जिंदगी में तेरे सिवा कोई और आये।
🖋🖋 आशीष सिंह-
एक एक कर सारे
तोड़ लाऊंगी,
पापा आपके लिए
चाँद तारे तोड़ लाऊंगी।-
शायद यहीं से जा रहा है
कई वैकुंठ वासियों को लुभा रहा है
मगर हम नहीं लालायित इस हेतु
धरा से बंधे है अपने प्रेम के सेतु
अभी वसुंधरा के कई दाम भरना है
इतनी जल्दी स्वर्ग जा कर क्या करना है?-
So that I could see
what I gave in plenty
to your body
"My love Marks"-
उस कागज़ में भी चमक आयी थी
शब्दों ने इक रंगोली सजाई थी
लिखे गए मेरे सभी वर्णों की मात्राएं
स्वरलहरियों सी झिलमिलायीं थी
पंक्तियां अपने संयोजन पर इठलाईं थीं
इस से ज़्यादा तुम्हें क्या बतलाएँ,
हाँ! मेरी पूरी ग़ज़ल मुस्काई थी।😊
✍ आशीष सिंह-
It is absolutely true......
World can't be imagined
Without you.-