तुम्हारी नज़र में क्या हु मैं !!
नजाने कैसे नज़रों को नज़र लग गयी कि
नज़रो ने देखने का नज़रिया ही बदल दिया ।-
स्वीकार कर !
जीवन की श्रृंखला; यह तेरा अभिमान हैं,
पश्चाताप को दूर कर; यह तेरा वरदान हैं।
भूल न जाना अपने अभिमान को,
मिलते रहेंगे कई मुश्किले; यही जीवन का सहारा हैं ।
ठोकर तुझे मिलेगा और तुझे ही दृढ़ बनाएगा।
बेबुनियाद हैं मुश्किले; तुह इस पहेली से अनजान न हो,
वास्विक से परे होकर, इसे तुह स्वीकार कर. तुह इसे स्वीकार कर।-
तुम्हारी नज़र में क्या हु मैं
नजाने कैसे नज़रों को नज़र लग गयी कि
नज़रो ने देखने का नज़रिया ही बदल दिया ।-
इंसान अच्छा या बुरा नहीं होता ;
लेकिन हालात उन्हें अच्छा या बुरा बना देते हैं।
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अगर तुम किसी को अच्छा नही कह सकते तोह
तुम्हे उसकी जिंदगी को लेकर बुरा कहने का भी हक़ नहीं।
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जरुरी नहीं कि हर चीज अपने फायदे के लिए ही की जाये...
कुछ चीजों को करने की चाह खुद में एक बड़ी वजह होनी चाहिए |
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जिस इंसान को तुम्हारे आचार और विचार की कदर नही, वो इंसान तुम्हे सिर्फ दुःख ही दे सकता हैं।
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