"प्रिय माँ,
सालों पहले मेरी बोर्ड परीक्षा से पहले घबराने पर तुमने एक बात कही थी। 'तू मेरा हनुमान है बेटा, अपनी शक्तियाँ भूल जाती है पर याद दिलाने पर पूरा समुद्र पार कर सकती है यहां तक कि पर्वत तक उठा सकती है' जानती हूँ संजीविनी पर्वत का ना सही, जिंदगी की तकलीफों का ज़रूर हो सकता है। जान लक्ष्मण की ना सही कलयुग में अपनी ही बचा लूँ तो काफी है। तब रोते हुए मुस्कुरा उठी थी मैं जैसे आज सुबह सुबह तुम्हें याद कर मुस्कुरा रही हूँ।"
(Read whole in caption)
-