हर इक दिन गुजरा कई सदियों जितना।
तौहीन न्याय की और मुज़रिम ये अदालत।-
अधूरी ख़्वाहिशें, उलझे रिश्ते, बिछड़ने की कश्मकश।
जानाँ , तुम्हारा बोझ इस जन्म अब मेरे साथ जाएगा।-
बचपन को कैद किया, उम्मीदों के पिंजरों में।
एक दिन उड़ने लायक कोई परिंदा नही बचेगा।-
बचपन में मुझे नोट्स बनाना काफी पसंद था। नए सत्र की शुरुआत होते हर विषय की दो कॉपियाँ खरीदता था। एक रफ़ कॉपी जिसमें कक्षा में पढ़ाई गई हर एक बात ध्यान से लिखता था। सारी बातें लिखने के चक्कर में लिखावट किसी सुप्रसिद्ध डॉक्टर जैसी हो जाती थी। फिर घर आकर फेयर कॉपी में सुन्दर लिखावट से बस काम की जरूरी बातें लिखता था। 5 पन्ने के रफ़ को 1 पन्ने में फेयर करता था और फिर इसी 1 पन्ने के सहारे सभी परीक्षाओं की तैयारी करता था।
ठीक वैसे ही दोस्ती और दुनियादारी में जरूरी होता कि हम अपने करीबी इंसान के दिल की सारी बातें सुने लेकिन कुछ समय पर बस सकारात्मक बातों को सुन्दर लिखावट में फेयर करते रहना भी जरूरी है ताकि ज़िन्दगी उस फेयर कॉपी के भरोसे आगे बढ़ सकें।-
अपने भीतर मैं एक तूफ़ान लिए बैठा हूँ ।
तुम्हारे लबों की खामोशी पढ़ने के इंतजार में ।-
मेरे रूह से तुम्हारे रूह तक, न जाने मुसाफ़िर कितने है।
इन हाथों को उन जुल्फों तक , रोका आखिर किसने है।-
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