रात का अन्धेरा कितना भी गहरा क्यूँ ना हो, सूरज की एक किरण से नेस्तनाबूद हो जाता है।-
3 MAY AT 10:23
15 MAY AT 0:29
अभी नहीं, कभी नहीं चाहिए
मदद के लिए आपका हाथ।
अभी एक मुक़ाम, एक मंज़िल
अकेले तय करने दीजिए।
गुमसुम हवा के झोंकों को तब्दील होने दीजिए
संसनाते झंझावातों में।
शीत रात्रि की रेत को तपने दीजिए
ग्रीष्म के तापों में।
नाज़ुक शीतल बूँदों को बदलने दीजिए
विशाल धाराओं में।
सागर की शांत लहरों को बदलने दीजिए
अमावस के ज्वारों में।
अभी नहीं, कभी नहीं चाहिए
मदद के लिए आपका हाथ।
अभी एक पथ, एक पड़ाव
अकेले तय करने दीजिए।
टिमटिमाती लौ को तब्दील होने दीजिए
बजरंग ज्वालाओं में ।
हमारी आँख के हर आसूं को तब्दील होने दीजिए
धधकते अंगारों में।
हमारे संयम के बाँध को बदलने दीजिए
उफनते सैलाबों में
और हमारे तरकश के तीरों को खाली होने दीजिए
सरहद पार आतंक के घावों में ।
अभी नहीं, कभी नहीं चाहिए
मदद के लिए आपका हाथ।
अभी एक सफर, एक संघर्ष
अकेले तय करने दीजिए।-