शहर सुनसान,दूर तलक एक साया था
फूलों की आड़ में
कोई काटो से बना गुलिस्तां लाया था
तबाह - ए - दिल में तूफ़ान आया था
हकीकत में रूबरू भ्रम की छाया था
जिनके लिए आंखो ने ख्वाब सजाया था
उसने ही इन आंखो को बेपनाह रुलाया था
एहसास भी रो पड़े
जब उसने आखिरी बार गले लगाया था
मुझे देख उस दिन
बादल ने भी खूब शौक मनाया था........-
दिन में हज़ारों दफा
तस्वीर को तेरी निहारा है
तेरे लबों से ना सही
निगाहों की हर बात को दिल में उतारा है
बिखरे से थे हम
पता नहीं कितनी बार खुद को संवारा है
मेरी खामोशी ही
तेरे मेरे रिश्ते का सहारा है
बेवफा हमें कहते हो ...
बेखबर हमने भी
लम्हा लम्हा इंतज़ार में गुजारा है .......-
सीधे सादे से है हम
कोई पैच - ओ - खम नहीं रखते
जी भर आता है तो
रो लेते है हम कोई ग़म नहीं रखते
दर्द जिंदगी - ए - दस्तूर है
गलतफहमी मत रखना ए दोस्त
क्योंकि हम दुआओ में असर कम नहीं रखते
दुश्मनी नफ़रत गिला या शिकवा
कुछ शब्द है
जिन्हे दोस्ती के बीच हम नहीं रखते
जिंदगी में दाखिल होते है
और चले जाते है लोग तुम आगे बढ़ो
क्योंकि हमेशा तो आंखे नम नहीं रखते .......-
कलियों का अल्हडपन
भौरो का गुंजन हो
संगीतमय मौसम में
उनकी बाहों का बंधन हो ...
रूपसी की रुपता का
सिर्फ उनके नयन दर्पण हो
माथे पर बिंदी , कानों में झुमके
हाथो में उनके नाम के कंगन हो ...
मेरे प्रेम गीतों सा रंग रूप अधूरा है
श्रृंगार होगा पूरा
जब उनकी दी हुई चूनर हो .....-
प्रेम प्रणेता कान्हा
जिसमें धर्म , तप , त्याग , प्रेम सम्पूर्ण संगम है
क्रोध रणचंडी , कभी मनमोहक सा श्रृंगार
अनुपम इसका महाकाव्य में वर्णन है....
विवाह नहीं प्रेम लक्ष्य ,
समझाया प्रेम , अंतर्मन का मिलन है
निश्छल प्रेम ,
बिना बांधे बंध जाए ऐसा बंधन है.....
......कान्हा ......
तुम्हे मेरे हर प्रेम शब्दों का समर्पण है
मै क्यों विरह में अश्रु छलकाऊ
जब मुझे देखने के लिए
तुम्हारे नयन दर्पण है .......-
कमबख्त खता जुल्फों ने की
दीदार की सजा झुमके ने दी
वार कर वफ़ा नज़रों ने की
इश्क नाम देकर सजा दिलों ने दी-
वस्ल की शब से हमें रब्त नहीं कोई
हम तो हिज़्र का भी जश्न मनाते है
अरे ! मयखाने में हमें ना ढूंढिए
हम जाम हाथो में लेकर शेर सुनाते है ......-
जिक्र तुम्हारा , फिक्र तुम्हारी
हसते हुए भी आज तक रुला देते है
वाकिफ थे हमारे हर राज से
और वो धड़कनों को भी दगा देते है
हम खुद को उनके हवाले कर
खुद को भुला देते है
ग़ज़ल में उनके हुनर को पेश कर
उनका नाम मिटा देते है
" अब " दिख जाए महफ़िल में वो
हम हाथ जोड़ कर वहां से विदा लेते है ....
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एहसास
नासमझी के बहाने वो अलविदा कह गए
और हम उन्हें एहसास समझाते रह गए
बेवफाई किसी एक ने की और
दो दिलों की नींव से बने रिश्ते ढह गए
तूफ़ान की आहट सुनकर ही
एहसास मेरे बिन बरसात ही बह गए
एहसास मेरे हस कर सभी गम सह गए
लफ्ज़ मेरे एक बार फिर ख़ामोश रह गए
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ये जिंदगी सुकून तलाशती है
लेकिन........
जब ये आंखे आइने में खुद को निहारती है
नए नए ख्वाब दिल में संवारती है
कैसे तुझे समझाऊं ए "जिंदगी"
मन मेरा बड़ा शरारती है 😜-