जय देवभूमि
दैणा होयां खोली का गणेशा हे
दैणा होयां मोरी का नारेणां हे
दैणा होयां पंच नाम देवा हे
दैणा होयां नौ खंडी नरसिंगा हे
दैणा होयां जय बाबा केदार हे
दैणा होयां धौली देवप्रयागा हे
दैणी होली ये देवो की ये भूमि हो
धन्य, ई धरती मा मेरो जन्म हुवे
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वो बरसती रही इतनी कि
हम बहने लगे...
नमक मुँह पे लगा ,
आवाज आयी, होश आया
समझता था जिसको धार मैं ,
अब समंदर कहने लगे ,
पड़ा है रेत में हर कोई यहा
मदहोश तो कुछ मर चले
तिनका दोस्ती करने चला था उस हवा से
सुना है आजकल उसके आगे बवंडर थमने लगे-
क्रीम-पाउडर का शौक नहीं रखती...
पहाड़न है जनाब वो नथ और पिछोड़े में भी अप्सराओं से कम नहीं लगती।
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हम उस प्रदेश से आते है,
जहां की खूबसूरती देखने,
खुद बादल भी जमीं पे आते है।।
❣️❣️❣️
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दुःख में रोता कवि,
सुख में हंसता कवि,
सूर्य संग उगता कवि ,
सांझ संग ढलता कवि,
सागर सा वेग भरता कवि,
रेत सा बिखरता कवि,
प्रेम में डूबा कवि,
प्रेम में टूटा कवि,
बारिशों संग भीगता कवि,
आंसुओ से गम को सींचता कवि,
पर्वत सा अडिग ये कवि,
मोम सा पिघलता कवि,
आग में जलता कवि ,
धूप में तपता कवि,
व्यंग उपहास लिखता कवि,
ख़ुद को ख़ुद ही कोसता कवि,
व्यथा मन की रचता कवि,
हर दिल में ये बसता कवि,
महबूब संग आह भरता कवि,
रंग गुलाल मलता कवि,
फागुन राग गाता कवि,
सावन सा उमंग भरता कवि,
मोर संग नृत्य करता कवि,
बचपन को यौवन में जीता कवि,
माँ के आंँचल से आंसू पोछता कवि,
बखान कलम की करता कवि।।
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इत्र हू छुप के सांसों में घुलता हूँ
कुछ इस तरह मैं अक्सर तुमसे मिलता हूँ
तेरे जिस्म की तह मेरी जमीं है
तू तब मचलती है
मैं जब उसपे चलता हूँ
तेरे होने से वजूद मेरा है
तू पूछती है मैं फ़िक्र आखिर क्यों करता हूँ
बारिश भी बहाना हैं
मुझें बहाने का
यहां सावन भी जलता हैं
तेरा जब जिक्र करता हूँ
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जमाना पूछेगा ये हर वक़्त कि कौन हो तुम ?
क्या बिसात है ?
जवाब सर झुका के दूंगा
तू भी सर झुका के देख
माना तू होगा आफ़ताब , मगर
तेरे जैसे दीखते यहां कई तालाब है-
ज़िन्दगी एक अफवाह है
दीखता नहीं कोई जिया है
सब उलझे एकदूसरे के सपनो में
सपना - हक़ीक़त दो पहलू का सिक्का है-
सरकार से सवाल बिलकुल जायज हैं
कुछ फरमायें इंसानो पे
ना ना ,
ये सवाल ही नाजायज हैं-