टूटते हैं आसमां से तारे भी
फिर तुम्हारा दिल, सनम क्या चीज़ है
ये मुहब्बत ही सिखाती है यहाँ
क़त्ल औ' क़ातिल सनम क्या चीज़ है-
"नहीं हूँ मैं तेरे क़ाबिल, नया तू ढूँढ ले आशिक़"
मुझे यूँ, छोड़कर जाना सनम अच्छा बहाना है-
चलो रे ना-ख़ुदा, मुझको समंदर पार जाना है
जहाँ पर दूसरी लहरों, फ़िज़ाओं का ठिकाना है
कि लहरें चूमती जिसको, हवाएँ गुदगुदाती थीं
वहाँ दश्तों का है डेरा, फ़क़त साहिल बेगाना है-
न बुझ पाई मेरी ये प्यास, बस इक बूँद भर पीकर
वो बारिश है अग़र, तो क्यों मेरा ख़ाली पैमाना है-
नर्म मेरी भी ज़िन्दगी होती
ओढ़नी की अग़र होती छाया
देख ज़ालिम कि क्या हुई हालत
धूप में जल गई मेरी काया-
ओ नसीब को रोने वाले, जा ख़ुदा से कह
वो नसीब में तेरे क्यों 'फ़ज़ल' नहीं लिखता
क्यों नहीं लिखा है उसने गुलाब कीचड़ पर,
और क्यों ख़ुदा मिट्टी पे कमल नहीं लिखता-
स्याह मेरी क़लम से निकलता गया
मैं क़लम को क़लम मुझको लिखता गया
ये जुनूँ से बदलकर हुआ शौक़, फ़िर
शौक़ मेरा सुकूँ में बदलता गया-
मुझे सब देखते ही रह गए, आख़िर टशन में था
मेरे बालों पे माँ ने आज कँघा जो फिराया था
नज़र अब क्या लगेगी दोस्तो मुझको सनम की भी
मेरे माथे पे टीका, माँ ने काजल का लगाया था-