“मेरे दिल का रंग”
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मेरे दिल का रंग
कई भावनाओं के रंग में रंगा है
तेरे सदाबहार प्यार में खिल कर
गुलाबी सुर्ख रंग हो जाता है
दूर जो होता ये दिल मेरा तुमसे
पतझड़ रेगिस्तान सा वीरान रंगहीन
या फिर काला सफेद सा हो जाता है
तेरे प्यार की बरसात में
सावन सा हरा भरा हो जाता है
तेरे प्यार को पाकर चेहरे पर
जो मुस्कान खिलती है
दिल मेरा बसांतिक
सूरजमुखी पीला हो जाता है
असीमित तेरा प्यार
मेरे दिल में उमड़े प्यार को
नीला आसमां कर जाता है।
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“ज़िन्दगी”
ज़िन्दगी सुंदर है पर जीना हमें नहीं आता।
हर चीज़ में नशा है पर पीना हमें नहीं आता।
मंजिलें मुझे छोड़ गईं और, रास्तों ने मुझे संभाल लिया।
हादसों ने ख़ुद अकेले मुझे पाल लिया।
ज़िन्दगी ने सवालात क्या बदल डाले।
वक्त ने हमारे हालत बदल डाले।
हम आज भी वहीं खड़े हैं कोई नज़र तो डाले।
बस लोगों ने मेरे लिए अपने खयालात बदल डाले।
मेरी खुशी के लम्हें इतने छोटे हैं पल भर में ही गुज़र जाते।
मेरे सारे हसीन ख़्वाब मेरे मुस्कुराने से पहले ही गायब हो जाते।— % &-
“अकेलेपन का दर्द”
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कैद कर लिया है ख़ुद को
बिना सलाखों के अकेलेपन के दीवारों में
ज़िन्दगी के अंधेरे में बस एक उजाला है
मेरे पास तेरी मोहब्बत के यादों का सहारा है
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आज मैं तेरे वास्ते इश्क़ की नई इबादत लिखूँ
तेरा अक्स और मोहब्बत झलके ऐसी इबारत लिखूंँ
सजा दूंँ आज मोतियों से अपने अल्फाज़ की सूरत
जिसका ज़िक्र आजतक दुनिया के किसी क़िताब में ना हो।
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अपनी ज़िंदगी दूजे के नाम करना
क्या है ये ख़ुद के वजूद को खोना
कुछ रिश्ते अनकहे से
जिनका कोई नाम नहीं होता-
“ज़िन्दगी का खालीपन”
क्या होता है खालीपन
जब शहर के चकाचौंध भीड़ में
ख़ुद को अकेला पाते हैं
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इकतरफ़ा मोहब्बत
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कभी देखा था एक नज़र में,
दिल धड़का था बेकाबू सा।
अजनबी था अपना लगता था,
जैसे जानता हो मुझे बहुत पास।
नज़रें मिलीं थीं कुछ पल के लिए,
दिल में उठी थी तड़प की आग।
मानो मिली हो कोई निशानी,
ज़िन्दगी में आई एक नई साँस।
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“इश्क़ की गहराई”
ग़ज़ल
किसी सूफ़ी कलाम सी तेरी परछाई है।
ज़ुल्फ़ जैसी ग़ज़ल तबस्सुम जैसे रूबाई है।
इतनी शिद्दत सी मेरी इश्क़ की गहराई है।
देख ज़माने वालों की आँखें भर आईं हैं।
तुमने जो मेरे संग मोहब्बत की रस्म निभाई है।
धोखा कर मोहब्बत मेरे संग की बेवफ़ाई है।
देकर ज़िन्दगी भर का दर्द और ग़म दे गई लंबी जुदाई है।
अब ना कर पाएंगे कभी एतबार मेरे इश्क़ की खुदाई है।
देख तेरी बेवफ़ाई ने ज़िन्दगी में क्या रंग लाई है।
अब आजकल अकेलेपन में मेरे संग मुस्कुराई तन्हाई है।
तेरे छूने से जिस्म मेरा जी उठता था अब लगता मौत आई है।
सब कुछ खोकर तुझे पा जाएं या नहीं ख़ुद से ही ना जाने कैसे लड़ाई है।
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कविता पुनर्निर्माण
“तुम्हारा पैगाम”
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Anita Thakur की कविता “तुम्हारा संदेशा” से पुनर्निर्माण-
मेरा दिल वो थैला है जो बोझ उठा रहा है तुझसे बिछड़ने का
ज़िंदगी ने दिया जो ग़म उठा रहा है दिल तेरे मोहब्बत का
मेरी आँखों में जो नमीं है वो वजूद है तेरे अक्स का
कभी थे तुम ज़िंदगी आज़ हज़ारों दर्द दे गए बेवजह का
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