साथ चलो तो आगे बढ़ते ही जाना है
सूरज की तरह दुनिया पर छाना है
या तो ख़त्म करेंगे बुराइयाँ समाज से
या बुरे समाज मैं से मिट जाना है
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कोयल को एक गीत गाते देखा,
आज उसे गुनगुनाते हुए देखा।
बादलों को उड़ा ले गई हवा,जब उसे
सूरज से आंख मिलाते हुए देखा।
न जाने कितने गुमान में होगा आज, वो दरख़्त
उसको एक पेड़ की छांव में वक्त बिताते हुए देखा।
बारिशों से भर गया दिल का सूखा दरिया,
जब आज उसे मैने मुस्कुराते हुए देखा।
पतझड़ में खुशबू गुलाब की सी आई
अचानक,जब उसे सामने से जाते हुए देखा।
और
इंसान थोड़ा बदमाश जियादा पागल है,अपना नवीन,
कहता नींद भी नहीं आती,और हसीन ख्वाब भी देखा।-
हवस जिस्मों की नही,भूख आजादी की थी,
पागलपन की नही सनक आजादी की थी।
लिए बंदूक भीड़ गया वो झुंड से अकेला,
उसे फिक्र मौत की नही आजादी की थी...-
वक्त बदला,लोग बदले,बदल गया संसार
दो सूरत का एक आदमी,खुद बन बैठा भगवान।
सत्ता धारी सांप बन गए,इंसान हो गया हैवान,
ऊपर वाला भी सोचे अब, ये कैसा है हिंदुस्तान।
जनता बन कट्टर गई,दिखा ना कोई आदमी महान,
रंगो का भी धर्म हो गया भगवा हिंदू,हरा इस्लाम।
सांस बिके,जिंदगी बिके, बिक गया दिन ईमान,
बेच रहा रोजाना खुद को,हाय देखो कैसे इंसान।
मौत आई रूप बदलके,छुप जाओ आया हैवान,
जैसी करनी वैसी भरनी, बदला ले बेटा भगवान।
जो तू बोए वो ही खाए,कैसे खा पाए पकवान,
समझ ले भाई वक्त रहते,भगवान नही तू है इंसान।
तेरा मेरा काम ना आवे, देख समझ बात ये मान,
खुदा ने इंसान बनाया क्यूं बने हम सब हैवान।-
दिल टूट गया तो भी तुम्हे चाहेंगे,
हकीकत में न सही ख्वाबों में आयेंगे।
तुम कहो तो सही मुझको अपना एक बार,यार
या तो,तुम्हे साथ लायेंगे,या फिर मरकर आयेंगे।
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#khwabon ki duniya-
मैने उसको देखा था,हंसते गाते हुए,
देखा,मैंने उसको आंसू छुपाते हुए।
तन्हाई में, बड़ा खुश था वो,
घबराता था नजरे मिलाते हुए।
रहता अक्सर खुली किताब सा,
हिचका नही बातें कभी,बताते हुए।
नकाब हमेशा रखता ही था वो,
समझा मैने उसको दोस्त बनाते हुए।
कहता रूप एक नही, दो चार है मेरे,'नवीन'
कभी हंस देता, कभी रोता कलम उठाते हुए।-
अपने भी गैर हो जाते है,
वक़्त बुरा हो तो,
अजीजों से भी बैर हो जाते है।
वादे,भी अक्सर टूट जाते है,
देखकर,वक़्त का खेल
कई साथी पीछे छूट जाते है।
और
कहते थे जो अक्सर,महफिलों में
कि हम साथ रहेंगे हर वक़्त तुम्हारे,
बुरा वक़्त देख
सबसे पहले अकेला छोड़कर
भाग जाते है।-
मुकम्मल इक दास्तां वो यारो हो भी सकती थी,
मोहब्बत जो हमारी थी,हमारी हो भी सकती थी।
कि, फरमाइश वो शादी की, हुई होती अगर पूरी,
तो मैं दूल्हा और वो दुल्हन मेरी हो भी सकती थी।
मै उसका रांझा और वो हीर हो भी सकती थी।
दिल के इस मंदिर की वो पीर हो भी सकती थी
जो न आता ख्याल,घर और दुनियावालों का हमको
अधूरी सी कहानी पूरी वो यारो हो भी सकती थी।
बाहों में बिलखकर के वो मेरी, रो भी सकती थी,
लिपटकर मौत से तन्हा अकेली,सो भी सकती थी।
दिया बाती से हम रहते थे माना,साथ बरसों से,
फड़फड़ाकर के जी रहे न जाने कितने अरसों से।
जो की होती गर हिम्मत लड़ने की हमने अपनों से,
मार देते अगर रिश्तों को,प्यार के जहरी सपनो से.
जो कर देते निलाम,इज्जत उनकी मोहब्बत में,तो
मै उसका हो भी सकता था वो मेरी हो भी सकती थी।-
जो कुछ सिखावे समझावे,
डांटे डपटावे,
लेकिन सब नातों से सर्वथा गुरु ही बड़ा पावे।
ज्ञान मिले,मान मिले,मिल जावे सम्मान,
सिख ऐसी सीखिए कि, मिट जावे अभिमान ।
थोड़ा थोड़ा जानलो,सबसे अच्छी,बात
सारी दुनिया गुरु भई,ले लो तुम संज्ञान।-