हिस्सों में टूट जाना अभी बाकी है
साथ का छूट जाना अभी बाकी है
मैं तो रिश्ता बचाता चला हूं मगर
हद से भी पार जाना अभी बाकी है
इस तरफ भी कभी लौट आओ सनम,
एक रिश्ता निभाना अभी बाकी है
इश्क की हद भी तुमने कहां देखी है
जान से मेरा जाना अभी बाकी है
बस मैं इज़्ज़त कमाता रहा हूं अभी
नाम मेरा कमाना अभी बाकी है
मेरा जो शोर सुनके बुरा सोचते
मेरा खुद को गिराना अभी बाकी है
आग अंदर लिए अपने बैठा है वो
नजरों का छलका जाना अभी बाकी है
आसमां देखकर यूं न मुस्काओ तुम
घिर के बादल का आना अभी बाकी है
Naveen sharma-
ग़ालिब सा दर्द तो नहीं है मेरे अल्फाजों में,जनाब
जब सहन नहीं कर प... read more
वफ़ा उसकी खारा पानी,
तीखा और मतवाला पानी,
प्यास किसी की न बुझेगी,
है बस दिखलाता पानी।-
तुम कहो तो मौत लिख दूं,या
फिर मैं,इश्क को खौफ लिख दूं,
कि,लिख दूं,तुझे मूरत वफ़ा की,
या छोड़ सब मैं कुछ और लिख दूं।
तुम कहो तो मौत लिख दूं...
बेशक तू मुझे मिली नहीं,
पर भूल तुझे मै पाया नहीं,
लिख पाऊंगा नहीं बेवफाई कहीं,तो,
क्यों ना खुद को ही कमजोर लिख दूं,
तुम कहो तो मौत लिख दूं..
सुकून कहीं मिलता नहीं,रह
जाता,कुछ कुछ बकाया कही,
नींदें आज भी सो पाती नहीं,
लगता है तू रूबरू यहीं,
ख्वाब पूरे हुए नहीं,मै,तेरे नाम,
ख्वाबों की पूरी रात लिख दूं।
तुम कहो तो मौत लिख दूं, या
फिर मैं,इश्क का खौफ लिख दूं,
मुख़ालफ़त दिल में जारी रहेगी,
उम्र भर लगी ये बीमारी रहेगी,
चलता रहेगा दौर वफाओं का,
चलती इश्क की अय्यारी रहेगी।
Naveen Sharma-
वो जो जान समझते है मुझे,अपनी
जान दे दूं,तो जान से जायेंगे क्या??
Naveen Sharma-
तुम्ही हो सच्चे सपूत,तुम् पाप पुण्य विचारक हो,
धर्म अर्थ के ज्ञाता हो तुम,तुम ही मार्ग प्रचारक हो।
अहिंसा वादी गांधी के गढ़ में तुम ही हिंसा कारक हो,
ग्लानि लिए बैठे कर मन में,चोगा सफेद धारक हो।
एक दिन का देश प्रेम, तुमको बहुत मुबारक हो!
तुम गुणी,तुम ही शकुनी,तुम मर्यादा पुरषोत्तम हो,
झांको भीतर अंतर मन में,क्या तुम ही सबसे उत्तम हो।
तुम हो सर्वे तुम ही सर्वा,तुम ही सबसे गुणी यहां,
दूजे के लिए है ज्ञानी,खुद पे मूर्ख अज्ञानी यहां,
जड़े काट के पेड़ लगाया पाएगा फल कब कहां,
खुद को सच्चा सब कोई कहते,बिकता हर कोई जहां।
आजादी को सब पूजते,एक दो दिन गुण गाते है,
वतन पर जां लुटाने वाले,हर दिन नए आते है।
देश की उन्नति देख न सकते,दूजे के सिर मढ़ते है,
कचरा खुदबखुद करते,ताने सरकार को कसते है।
देश महान बनेगा कैसे,दुनिया से लड़ेगा कैसे,
कानून-2 सब चिल्लाते, कानून तोड़ना छोड़ेगा कैसे
जिंदगी को सस्ता समझे,समझे खुद को ही महान।
ऐसे कैसे महान बनेगा यारों अपना हिन्दुस्तान -2
Naveen sharma-
बिगड़ने में उसे इक हफ्ता लगता है,
जिसे बन जाने में एक अरसा लगता है
मैं निकला घर से तब ही तो हुआ मालुम
महीना घर में राशन कितना लगता है
किसी की रास्ते पर जां बचानी हो
के ये ना सोच वो तेरा क्या लगता है
तू मिल जिस भी किसी से मिलना बन अपना,
सिवा मां बाप के कौन अपना लगता है
मियां चेहरे तो इतने देखे हैं मैने
मुझे हर कोई लगाया चेहरा लगता है।
Naveen Sharma-
जमाना भेड़ चाल समझता है,
इंसान सब को ही अपना समझता है,
सच कड़वा है साथ में तीखा भी,
मीठा खाने वाला तीखा कहां समझता है।-
मोहब्बत वो नशा नहीं जो कुछ दिन में उतर जाए,
"इश्क" जान लेकर ही जान छोड़ता है-
मेरी मौत पर वो इतना रोएगा,
रोता है "बच्चा" जैसे खिलौने को।
Naveen sharma-