शब्द मुके बोलू लागती,
भावनांचे तरंग मनी उठती,
गद्यास ना झेपे ते विषय
कवितांमधूनी सहज प्रकटती..-
गलती मैंने भी की सूरज उन्हें समज़ने की ।
हम जलते रहे तनहाई में
और वो गैरों में डूब गए ।-
ऐ जिंदगी,चल..
थोडा घुम आये
बादलों पे रखे पैर
नया आसमां तैर आये
उडते इन पंछियों की
गुफ्तगू सून आये
हसीन मंझरो में गीत
प्रीत का गुनगुनाए..-
अजी माहौल से नहीं दिल भरता ये
अब तो मौसम इश्क़ में डूबने का हैं
तन्हाइयों के बादल भूल ही जाइए
जब वक़्त ये मोहब्बत में भीगने का हैं ।-
मैं वो शायर नहीं जिसकी फ़न
किसी अर्ज़ की मोहताज हो
हम तो लिखते भी खुदके लिये हैं
और ये मर्ज़ी भी होकर दीवानी
गुलाम हैं इस फ़नकार की अबतक..-
तुझ्यासाठी बघ मि किती
मोठृ मन केले
तुला आवडत ना खेळायला
म्हणून हृदयाच खेळणं केल.....-
काश ये रूह पढ़नेवाला कोई होता
इन लफ्जों की कभी जरूरत ना होती
दो पल उनकी बाहोंमें खो जाता
फिर चाहत ना कभी नींद से होती-
No amount of words could
ever describe the eternal
love of a mother,
All I can say is
she is not only my lifeline
but also an identity
without whom my existence is nothing but a void..-
शायद किसीके पास
आपकी ये तस्वीर नहीं होगी
मेरे दिलमें उतरी यादों जितनी
वो रंगीन नहीं होगी
शायद आपकी चाहत
कितनो की तमन्ना हो
फिर भी उनकी मोहब्बत
मेरी आशिकिसी आमिर नहीं होगी..-
जरुरत से भी ज्यादा कुछ
और ही बने हो तुम
इन दीवानों सी धड़कनों की
वजह बन गए हो तुम
मुलाकातों के सिलसिले
यूंही चलते रहे और
गुमनाम इस शायर की अब
पहचान बन गए हो तुम,
जरूरत से भी ज्यादा कुछ
और ही बने हो तुम
मिटा भी ना पाएंगे कभी
वो वजूद बन गए हो तुम ।-