कि तुम तो धूप सी हो,
मैं सर्द का ठिठुरता बदन।
तुम्हारे छू भर लेने से,
मैं सुकून पा जाऊं।।-
कि जब जब हार का डर उठता है;
मैं तब-तब रण में उतरता हूं।
किस बात से मेरा दिल डरता है;
मैं मिलकर देखना चाहता हूं।।
फिर थाम के उसका हाथ मैं;
बहुत दूर... निकल जाता हूं।
जो मौत मेरी है उसके साथ में;
कई जीवन जी के आता हूं।।-
किसी से दिल बांटने की तमन्ना नहीं रही।
दिल कचोटता रहता है दग़ाबाज़ीयों से।।-
हर रोज जो यह शायरी कागज पर लिखा करता हूं।
एक रोज तुम्हारे बदन पर उंगलियों से मैं सुनाऊंगा।।
हर रोज जो यह नजर तुमको तरसा करती है।
इक उम्र जी भर निहार कर इनको मैं बहलाऊंगा।।-
हमें सांसो पे ऐतबार नहीं,
हां एक रब है जो;
इन्हें यूं ही थमने नहीं देगा..
कि वो जिसने मुझे चलना सिखाया है,
वो खुदा मुझे;
मंजिल भी दिखाएगा...-
फिर एक नए चेहरे ने मुझे प्यार से देखा।
फिर एक नया ख्वाब अंगड़ाई लेने लगा है।।-
क्यूं लिखूं वो ग़म,
जो उनसे मुझे मिले थे।
मोहब्बत तो बड़ी ख़ामोशी से,
अपना लिया था मैं।
Kyu likkhun vo ghum,
Jo unse mujhe mile the.
Mohabbat to badi khamoshi se,
Apna liya tha mai.-
Yaari achchhi to jaari thi,
Us jail me do kaidiyon ke beech.
Ki ye beech me kaun aagya,
Ya bs ek riha ho gya.-
किसी के ना होने का भी सुकून है।
जो हूं नहीं वो दिखाना नहीं पड़ता।।-