तुम ना बिलकुल सुबह की चाय की वो पहली घुट की तरह हो...
कम्बख़त मुँह भी जलाती हो और मज़ा भी देती हो...!!-
आबारा बादल बन कर तेरे छत पर आऊँगा
बिजलीयों के साथ गरज के अपने इश्क़ का इज़हार करूँगा
और अगर फ़िर भी तुम नही मानी तो
बारिश बन के मिट्टी में मिल जाऊँगा
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बादलों को गुरुर था कि वो उच्चाई पे है
जब बारिश हुई तो उसे ज़मीन की मिट्टी ही रास आयी-
अब जो तुम साथ नही हो मेरे
दुनियाँ मेरे किसी काम की नहीं...
बस ये गोलियाँ अपना असर दिखाये
क्योंकि अब और जीना हमे गवाँरा ही नहीं...-
"तुम्हें लिखने की एक नाक़ामयाब कोशिश...✍️"
कल रात मैंने सोचा तुम्हें लिखता हूँ,
तुम्हें अपने शब्दों में पिरोता हूँ...!!
तुम्हारे रूप रंग का ज़िक्र करता हूँ,
तुम्हारे सुंदरता का वर्णन करता हूँ...!!
पर ऐसा हो ना सका...
मेरी उँगलियाँ जोर जोर से धड़कने लगीं
मेरे शब्दों के भण्डार निःशब्द होने लगें
मेरी धारा-प्रवाह सोच अनंत में कहीं खो गयीं
और मेरे ना चुप होने वाले जुबाँ सिल से गयें...!!
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"मैं काला"
मेरा रंग भी काला, मेरा रूप भी काला..
मेरा अंग भी काला, मेरा ढंग भी काला..
मेरा वस्त्र भी काला, मेरा नेत्र भी काला..
मेरा समय भी काला, मैं पीता चाय भी काला..
और इतेफ़ाक से आज तो
मेरी कलम भी काली और उसमें श्याही भी काली..
ये दुनियाँ भी काली, यहाँ की रातें भी काली..
यहाँ के लोग भी काले और उनके करतूत भी काले..
यहाँ के रिश्ते भी काले, यहाँ के वादे भी काले..
पर इन सब काली चीज़ों में अच्छी बात
ये है कि मेरा तो सिर्फ नाम ही है "काला"..
ना मेरा दिल है काला, ना मेरा मन है कला..
ना मेरी जुबाँ है काली, ना मेरी सोच है काली..-
वक़्त वक़्त की बात है ज़नाब...
एक वक़्त था कि जब हम उन्हें पाने
के लिए अरदास किया करतें थे...
औऱ
एक वक़्त आज है जब हम उनकी
यादों को भूलने के लिए फ़रियाद किया करतें हैं...
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🎭परछाई🎭
इस दुनियाँ में मैं तेरे पीछे-पीछे हूँ आई
तेरे ज़िस्म से जुड़ी हूँ, तेरे वजूद में हूँ समाई
हूँ धुंधला सा एक साया जिसे देख तू है घबराई
अँधकार से बनी हूँ, मैं हूँ तेरी ही परछाई
जब तूने हाथ उठाई, मैंने भी उँगलियाँ हवा में हिलाई
तरह-तरह के जानवर चिड़ियाँ मैंने भी है बनाई
अपने पैरों को तेरे साथ-साथ मैंने भी है थिरकाई
साथ तेरे खेलती और नाचती हूँ बनकर तेरी ही परछाई
जब तू कर रही होती है अकेलेपन से लड़ाई
तू कहे या ना कहे हर बात देती है मुझे सुनाई
तेरे चेहरे की हँसी-दर्द सब देती है मुझे दिखाई
तेरे संग चलूँ, तेरे संग रहूँ, मैं हूँ तेरी ही परछाई
सब अकेला छोड़ जातें हैं रह जाती है सिर्फ तन्हाई
झूठी दुनियाँ, झूठे रिस्ते-नाते सब करते हैं बेवफ़ाई
इस बेरहम दुनियाँ में जीवन की यही है सच्चाई
भूल ना जाना तू मुझे क्योंकि मैं हूँ तेरी ही परछाई-
"एक किन्नर"
ईश्वर की बनायी एक शख़्सियत हूँ मैं
सबसे अलग़ सबसे जुदा लेकिन रखती एक अहमियत हूँ मैं
हाँ, किन्नर हूँ मैं...
समाज में इज़्जत नहीँ है मेरी, लोग मुझे देख हँसा करतें हैं
लेक़िन फ़िर भी उन्हीं लोगों से पैसे माँग कर अपना पेट भरती हूँ मैं
हाँ, किन्नर हूँ मैं...
कभी सड़कों पे तो कभी ट्रेनों में तालियां बजाती हुई मिल जाती हूँ मैं
इसलिए नहीं की वही मेरा घर है बल्कि इसलिए की मेरा कोई घर ही नहीं है
हाँ, किन्नर हूँ मैं...
किसी के घर ख़ुशियाँ आने वाली हो तो सबसे पहले जान जाती हूँ मैं
बिन बुलाये ही उसके घर अपना आशीष देने पहुँच जाती हूँ मैं
और गर्व से कहती हूँ - "हाँ, किन्नर हूँ मैं..."-
"बचपन"
ना जिस्म की चाहत, ना पैसे की लालच
ना मन में कोई फ़रेब, ना ख़ाली ज़ेब
ना किसी को पाने की फ़िक्र, ना उसे खोने का ज़िक्र
ना किसी के आने की आशा, ना उसके जाने की निराशा
ना ही किसी से आगे बढ़ने की जद्दोजहत, ना इश्क़ कमबख्त
ना प्यार में धोखा, ना सनम बेवफ़ा
ना ज़िन्दगी की कसौटी, ना चेहरा बनाबटी
ना जिम्मेदारियों से भरे बस्ते, ना कठिनाइयों से भरे रस्ते
'बचपन' तो बेह्द खूबसूरत था ना.... फ़िर हम क्यों बड़े हो गए...🤔
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