इब्तिदा-ए-इश्क़ है, हो एहतराम से
उनको पास आने दो, हौले से आराम से
हमने तो दिल को खोल के रख दिया है सामने
कर लें वो भी तहक़ीक़ात इत्मीनान से
पल भर के साथ में हमें यक़ीन नहीं है
उम्र भर को जोड़ना उन्हें अपने नाम से
कर लेंगे और थोड़ा बहारों का इंतज़ार
फिर चैन से गुज़रेंगे, दिन आराम से
अश्क़ों में डूबी रात अँधेरी गुज़र गई
ख़ुशियों को खरीद लायेंगे अब आसमान से
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