वही दिन है वही रातें है वही रिश्तें और वही नातें हैं इन लबों पे गीत है तेरी मोहब्बत का हर रोज़ यही गुनगुनाते हैं
मंज़िल तु है मेरी बस यही सोंच कर चलते जाते हैं तु मिलेगी उस मोड़ पर शायद इसीलिए हर रोज़ उस गली से गुजर जाते हैं
दिन बीत जाता है कुछ काम करते करते पर हर शाम हम तेरी यादों मे ही बिताते हैं अब तो आदत सी हो गयी इस तरह जीने की तुझे क्या मालूम की हम तुम्हे कितना चाहतें हैं