बयान करता हूँ एहसास अपने अल्फ़ाज़ों से
की कोई पढ़ ले दिल यहाँ जज़्बातों से
भ्रूण हत्या करके उसी देवी का उपवास धरते हैं
अरे कोई निकाले समाज को ऐसे रीति रिवाजों से
मतलब के लिए बनते बिगड़ते रिश्ते हैं ज़िन्दगी
कोई पहल तो हो जुड़ जायें एहसासों से
ज़िन्दगी संवारकर भी बदले में कुछ न चाहती हैं
सीखो ए दोस्त सलीका दोस्ती का किताबों से
जब मन करे बात करते हो मनमर्ज़ी रूठकर दिखाते हो
अमा बस करो यार मन भर गया ऐसे मिजाज़ों से
कोशिश रहती है ज़िन्दगी का हर पहलू उकेरने की
दोस्त सीख लिया इश्क़ करना अब अल्फ़ाज़ों से
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