अपने हदों में रहकर
सरहदों को पार किया,
कुछ इस कदर मैंने
इश्क़ का विस्तार किया।
गुमशुदा थी शख़्सियत,
जिसको एक मुक़ाम दिया,
उनके दिल मे जब मैंने,
मोहब्बत का इश्तिहार दिया।
नजदीकियां जब बढ़ने लगी,
जमाने ने जमकर बवाल किया,
नशे की उस लत में भी मैंने,
आब-ए-तल्ख़ को दरकिनार किया।
बिखरे गेसुओं और
स्तब्ध पड़े दिल को संवार दिया।
हाँ कुछ कदर मैंने,
अबद तक टूटकर उन्हें प्यार किया।
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