मायूसियों ने जब बदहवासी को दी सदा,
सिपर बन के ख़यालों में आने का शुक्रिया।
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सुबु से शब तेरे हुक्म का ही ग़ुलाम हूं,
ख़्वाबों में तो छोड़ दो इक लमहा सो तो लूं।
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Ab bhi tumhe main agar dhundhoo
Tumhi btao phir main kidhar dhundhoo
اب بھی تمھیں میں اگر ڈھونڈوں
تمہی بتاؤ پھر میں کدھر ڈھونڈوں-
ख़्वाबों की ये दुनिया लगती बारहा रंगीं मगर,
हक़ीक़त ज़िन्दगी की मैने तो सहराओं मे है पायी।
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रहम-ओ-करम से तेरे हम अपनी सांसें लेते हैं,
जिनके थमते ही तुझमे हम खोने को प्यासे बैठे हैं।
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सियह रातों का ग़ुरूर तो है ना-तवां कितना,
तारों की बग़ावत के शरारे जिसपे हैं भारी।
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शोख़ी तुम्हारी देख इस दिल ने कुछ यूं कहा,
धोखों की क्या बिसात मैं तो अदाओं से चल बसा।
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ढूंढते ही रह गये हम ख़ुशनुमा उस वक़्त को,
सांस इक दिन रुक गई वक़्त ख़ुद ही थम गया।
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अजीब ख़ामोशी थी वो जो ख़ुद से हमें मिला गई,
पहचान के भी न पहचाना ज़िन्दगी ये कैसी हो चली।
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ज़िन्दगी में हादसों से दोस्ती कुछ यूं हुई,
हादसे तो रह गये हम कहीं खो से गये।
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