जिंदगी ने ख्वाब देखा ही कहाँ
जो अधूरे रहते
जिन्दा रहने की जद्दोजहद मे
नीवी जरूरतों को पूरा करने की चाहत मे अधूरे ही रहे
ख्वाब तब आते है
जब ख्वाहिशे पूरी होती है
जरूरत ख्वाब ख्वाहिश के बीच मे
एक महीन सा पर्दा है
जो आराम से हवा के झोंको
से उड़ जाते हैं
और रह जाते है तार तार धागे
जरूरतों की पैबंद के लिए..𝖒𝖔𝖍𝖎𝖙𝖆
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