दबे हुए एहसासों का पुलिन्दा है टूटी हर ख़्वाहिश फिर भी अरमान जिन्दा है कुछ कही कुछ अनकही बातों की गठरी है कभी खिलखिलाई कभी जिदंगी बिखरी है हौसले के सूत से खुद को बाँधा है छिटक कर गिरा जो ख्वाब कोई प्यार से उसको साधा है दर्द तो अब इस 'कृति' का बाशिंदा हर मुस्कुराहट फिर भी अब तलक जिन्दा है