मेरे दिल मे जितने तेजी से
उसने घर बसाया था उसने..
उतने तेजी से वो उजाड़ भी गया.
क्या करें ढांचा था बिन भरोसे का
जरा सा आंच क्या लगी पिघल ही गया..
जिसे जिंदगी भर की शम्मा ,
बनाये बैठे थे दिल मे,
वो भी सूरज की तरह ढल ही गया
जो कल जो मन्नतों का ताबीज बनकर था,
आज वो रेत की तरह गर्दनों से फिसल ही गया,
शायद वो मेरा था ही नही ,
उसे जितना समेटा कई दफा
हाथों से छूटकर निकल ही गया
हाँ वो कोई खूबसूरत ख़्वाब था,
जो आंखे खुलते ही बिखर ही गया!
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