मुश्किलों के काफ़िले, चौखट से ही निराश लौट जाते हैं
मेरी माँ का आँचल हर बार, दरबान बन के जो खड़ा है..!!-
तेरा मेरा साथ
जैसे चाय में डूबा बिस्कुट
टूट कर मैं तेरी बाहों में घुल जाऊँ
या अक्स तेरा मेरी नस-नस में घुला हो-
महक उठी है तन्हाई
तेरे आने के एहसास से
धड़कनें हैं बढ़ आई
तेरे लबों की प्यास से
पलकें हैं शरमाई
बीते रात के ख़्वाब से
अरमां ले अंगड़ाई
अगली रात के ख्याल से
सिमटी सी है परछाई
यूं हया की बयार से
लम्हें भी ये हरजाई
इक-इक बीते मानो इक साल से..!!-
ख़्वाहिश नही कि श्याम की राधे कहलाऊँ
चाहूँ बस कि मै ही मीरा, मै ही रुक्मणी हो जाऊँ
फिर प्रेम गाथा मेरी अमर हो या ना हो
जोगन फिरूं तेरे नाम की, रसिया बन प्रीत तेरी ही पाऊँ-
लिखना पसंद है, बस इसलिए नही लिखती मै
सुकून मिलता है दिल को... जब लिखती हूँ मै
वक्त बेवक्त नही लिखती मै
जज़्बात जब संभलते नही... तब लिखती हूँ मै
प्यार जताने मे थोड़ा कच्ची हूँ
पर प्यार जब उमड़ता है... तब लिखती हूँ मै
हालातों से हारना मुझे आता नही
बस थोड़ा थक जाती हूँ... तब लिखती हूँ मै
बातों में उलझाने का शौक नही मुझे
खुद खामोशी मे उलझ जाती हूँ... तब लिखती हूँ मै
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मुझे महकते गुलाब सा नही, किताब मे दबे सूखे पंखुड़ियों
सी मोहब्बत करना
शबाब का मेरे...चाहे रंग उतर भी जाए, इश्क का रंग कभी
फीका न पड़ने देना
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उफ़ान मारते ज़ज़्बात-ए-समंदर
लफ़्ज़ो में कहाँ समेट पाती हूँ
ये तो बस ज़रा-ज़रा से ज़र्रें हैं
अल्फ़ाज़ो में जो सजाती हूँ-
अपनी रक्षा को, राम की राह न देख, हे सीता
तुझमें खुद ही, काली का रूप धरा है-
जिंदगी की उलझनों का क्या हिसाब दें जनाब
ज़ुल्फ़ें भी अब सुलझने में दर्द दे जाती हैं..!!-
इंतज़ार की, इक लौ, पलकों तले मेरे जलती रही
लौ तले, तिल-तिल कर, मोम सी मैं पिघलती रही-