जब भी कवि की बोझिल साँसे
कविता ना लिख पाए
या फ़िर कोई घण्टों तक
इंतज़ार करवाए
अथवा कोई मीत पुराना
सहसा ही आ जाए
बनकर सच्ची साथी तब
चाय ही साथ निभाए।
जब भी कोई सम्मुख आकर
चाय की रटन लगाए
अनगढ़ मन की मरुभूमि पर
काली बदरी छा जाए।-
जो प्रेम का समंदर
करुणा की है जो धारा
अधरों पे जिसके मुरली
वह श्याम कितना प्यारा
जग के भँवर में जिसने
तेरे नाम को पुकारा
तेरी भक्ति में जो भी डूबा
उसे मिल गया किनारा
— % &-
मैं..... होकर भी कहीं नहीं
तुम...न होकर भी कहाँ नहीं?
और प्रिय जबसे, तुमसे सुपरिचित हो गई
मैं बनी कस्तूरी मृग निज से अपरिचित हो गई।-
मृदु ताप, सुवात,मृदा,नीर
निज नेह का उपहार देकर
अभिसिंचित किये सुकुमार कलिका
निज सुभग सत्व औ' सार देकर।
जागें मरूत के पालने में
अलि मधुर धुन गुंजित सकल
स्नेह के मधुप्रात में
दृगुन्मेष करते शिशु कलिका-दल
कितने परिश्रम प्रेम से
पुष्प का उद्भव सफल
आह!कर भी ना कंपित हुए
व्यर्थ तोड़ते जो इतने सरल?-
वक़्त की पगडंडी पर
चाहे जितने तेज कदमों से सफर कर लूँ।
स्मृतियाँ तुम्हारी पीछा नहीं छोड़ती
आसमाँ में साथ-साथ चलते
सूरज की तरह...— % &-
उसके आँचल तले
हर मुश्किल की तदबीर है
मेरी मुस्कान के पीछे
माँ की दुआओं की जागीर है— % &-
आहों से क्यों हो घिरी जिंदगानी,
जरूरी है कुछ सिरफिरी जिंदगानी।
नादानियाँ दिल में जिंदा हो थोड़ी,
क्या अधमरी-सी डरी जिंदगानी।
कुछ तो मोहब्बत हो अपने जुनूँ से,
केवल नहीं नौकरी ज़िंदगानी।
हर एक लम्हे में तू डूब कर जी,
किसको मिली दूसरी जिंदगानी।
कहने दे जिनको जो भी है कहना,
दिल की तू सुन ये तिरी ज़िंदगानी।
बनाकर टीले रेत के कब गिरा दे,
है ये बड़ी मसखरी जिंदगानी।-
जब प्यार संभल ना पाए तो निराश होने की जरूरत नहीं,
प्यार में मिली स्मृतियाँ भी प्यार से कम खूबसूरत नहीं।-
प्रणव और प्रणय का संगम,
इन्हीं के संयोग से है उद्भासित,
सृष्टि का यह परिदृश्य विहंगम।-