वो आया नज़रे उठी
दिल में पहली बार उम्र के सोलाहें साल में
प्यार की घंटी बजी
पहले दिन नज़रे टकराई
फिर इशारों इशारों में बातें हुई
वादों की बौछारें हुई
मिलने की बातें हुई
तुम्हारे प्यार का वो पहला छुअन
तन मन को सरोबार कर दिया
शर्म से झुक गई नजरें
जब तुमने हलके से उंगली दबा धीरे से आलंबन किया
मिलते रहे हम तुम चुपके चुपके जमाने से छुपके
मिलते रहे अक्सर हम जबतक
उम्र के उस पड़ाव में जब माध्यमिक परीक्षा पास की
विदाई ली हमने मिलने के वादों के साथ
छूट गया वो लड़कपन और पहले प्यार का एहसास
नसीब न हुआ दुबारा मिलने का
आज फिर वो बातें मुलाकातें याद आती और
कभी कभी हलका कांटों सा मीठा चुभन दे जाती है आज भी एतबार है इंतजार का
और कभी ना पूरा होने वाले पहले प्यार का।-
“खुद से खुद बावस्ता”
(अनुशीर्षक में)
पढ़िए।
कल एक झलक जिंदगी को करीब से देखा
वो राहों पर मेरे देख मुझे थोड़ा नाराज़ हो रही थी
अपनी हालत का खुद ही एहसान नहीं है मुझको
मैंने औरों से सुना कि परेशां हूं मैं
मैंने भी सोचा सब सही तो कह रहे मैं भी कितनों दिनों से खुद को ही भूल रहीं हूं
सबका ख्याल रखने के चक्कर में
आज जिंदगी खुद ही सवाल कर बैठी है
दूसरों के परवाह में हम खुद को भूल बैठे
जीवन में कितनी बार अपनी इच्छाओं की तिलांजलि दे दी मैंने
सबने मेरी भावनाओं का शोषण किया
कितनी बार रोने पर सबने मजबूर किया
जब देखा खुद को आईने में
मन यही सोचे कहां गई वो हंसी और मासूमियत चेहरे की
जब तक बचपन था तब तक जीवन अच्छा था
क्योंकि बचपना था कोई जिमेदारी नहीं थी
बड़े होते ही जिमेदारियां का बोझ
उसको पूरा करते करते खुद को ही भूल बैठे
लड़कपन से ही हर बार दूसरों की सुनी उनकी मन की
आज खड़ी खुद से मैंने माफी मांग ली है सबसे ज्यादा मन दुखाया है खुद का दूसरों की खुशी के लिए
आज खुद को खुश रखने के लिए लूंगी फैसला
जीवन मिला है बस चार दिन का अब जीना है थोड़ा अपने लिए प्यार करना खुद से है।
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इश्क़ बेवजह होता है इसलिए बेपनाह होता है
पता नहीं ये इश्क है या कुछ और पर
तेरी परवाह करना अच्छा लगता है।।-
फिर एक नया सवेरा जिसमें है ईश्वर का रहता बसेरा
दूर कर अंधेरा जीवन में उज्ज्वल नया सवेरा
सूरज किरणों संग हवाओं से महकता सवेरा
रात जो देखे ख्वाब उसको पूरा करता सवेरा
सब पर मुस्कान हो खिला हो हर एक चेहरा
सबके मन में दीप जले मन का दूर हो अंधेरा
खुला आसमान पंछी उड़ते दूर गगन उम्मीद का नया सवेरा
धीरज धरो मन में फिर होगा उज्ज्वल नया सवेरा।-
लफ्जों का इस्तेमाल शराफत से कीजिए
ये परवरिश के बेहतरीन सबूत होते हैं।-
“बूढ़ा इंसान और बूढ़ा वृक्ष”
ख़ामोश खड़ा अकेला पेड़
टकटकी लगा देख रहा
क्यों बूढ़ा इंसान बैठा है अकेला
देख उसे पड़ गया उलझन में
रह ना सका वो चुप पूछ बैठा तुरंत
क्यों यहांँ तुम बैठे हो
क्या मेरे तरह तुम भी
बूढ़े हो चले हो
इंसान झट आँख उठा देखा उसे
आँखों से अश्रु झर झर बहने लगे
पकड़ उसके तने को
बोल उठा इंसान
आज मैं हो गया हूंँ बिल्कुल तन्हा अकेला
बच्चों ने बोल दिया आज हमें
अब बोझ नहीं वो मेरा उठा सकते
सुन ये पेड़ इंसान को सहलाने लगा
बोल उठा धिक्कार है
ऐसे इंसान और इंसानियत पर
जो महफूज़ नहीं अपने घर बुढ़ापे में
अच्छा हुआ मैं पेड़ रूप में पैदा हुआ
आज भी उसी जगह अपने घर में अडिग खड़ा हूंँ
जहांँ मैंने अपने बीज से जन्म लिया।
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फासले तो करे तकदीर कम
हम अपने हिस्से की खुशी भी
रख दे तेरे कदमों में।
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