"ज़ख्म"
हर एक ज़ख्म का गहरा निशाँ होता है,
ज़मीर ज़िन्दा हो तो फ़िर इम्तिहाँ होता है।
जो रखता है दिलों में हमेशा ही साहस,
उसी के वास्ते हर इक जहान होता है।
ये दुनिया है बंधनों की, अजीब है निबंधन,
हर एक सांँस पे किसका गुमान होता है।
बना ले प्यार को अपना ही जीने का माध्यम,
कि नफ़रतों से भरा कब मकान होता है।
चलेगा कब तलक ये अंधेरों का दौर,
कभी तो रौशनी का भी गुमान होता है।-
“अधूरी चाहत”
ये अधूरी अपनी चाहत
ये अधूरी अपनी दास्तांँ
कोई ना दिखाए रास्ता
ना ही किसी मंज़िल का पता
“ये सुनी सुनी सी
लगता है कि जैसे”
ये दर्द जुदाई का
ताउम्र सहना पड़ेगा
होकर दूर तुमसे जुदा
तुम आज भी कहीं मुझसे जुड़ा
दूर हो कर अपनी मोहब्बत भूला कर
अब मुझे जिंदा रहना होगा
ये सुनी सुनी सी ज़िन्दगी
तुम बिन कहीं अधूरी सी
कैसे कांँटू ये पहाड़ सी ज़िन्दगी
जब तुम नहीं हो मेरे क़रीब जी।-
खुद का वजूद ढूंढती हूं
मां पिता को ही पाती हूं
मन के गलियारे में झांकती हूं
ईश्वर को ही हमेशा पाती हूं।
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आँखें तुम्हारी जादू हैं, नूर हैं, अजब गहरे सागर हैं,
जिनमें डूब जाऊँ मैं, वो मोहक नज़ारे हैं।
रेशमी ज़ुल्फ़ें तुम्हारी, जैसे रातें चाँदनी हैं,
इनमें खो जाऊँ मैं, ये क़यामत के नज़ारे हैं।
होंठ तुम्हारे गुलाब हैं, जिनकी ख़ुशबू बेमिसाल हैं,
इनको चूम लूँ मैं, ये दिल के अरमान हैं।
चेहरा तुम्हारा चाँद सा, जिस पर तिल का है निशान,
इसको देखूँ मैं, ये मेरे जीवन के वरदान हैं।
आगोश में तुम्हारी, मैं हर दर्द भूल जाऊँ,
ये बाहें मेरी जन्नत हैं, इनमें मैं बस जाऊँ।-
"पैसों की दुनिया"
पैसों की दुनिया में, अजब है मायाजाल,
धन के पीछे भागता, हर एक कंगाल।
सोने के पिंजरे में, कैद हैं सपने सारे,
लक्जरी कारों में, घूमते हैं मतवाले।
विलासिता के महल में, बसता है अहंकार,
पैसों की खनक में, खो गया है प्यार।
रिश्ते भी बिकते हैं, यहाँ बाजारों में,
शोहरत की चमक है, बस चकाचौंध चारों में।
ईमान की कीमत, यहाँ कोई न जाने,
पैसों के लिए, बिकते हैं सब ठिकाने।
ज़रूरत के आँसू, कोई न समझता है,
धन की गठरी में, हर कोई बस फँसता है।
सच्चाई भी यहाँ, पैसों से है खरीदी जाती,
झूठ की दुकानदारी, सदा फलती जाती।
ये दुनिया है पैसों की, अजब इसकी रीत,
हर कोई यहाँ, पैसों से ही रखे है प्रीत।-
"परेशानियों का सबब"
परेशानियों का सबब, दिल की उलझनें हैं मेरी,
जहाँ से उम्मीद थी, वो आँखें ही फेरीं मेरी।
शिकायतें नहीं कोई, बस इतनी सी गुज़ारिश है,
मुहब्बत की राहों में, क्यूँ ये दूरियांँ हैं गहरी।
सुकून की तलाश में, निकली थी मैं यहाँ से,
मिली हैं बस तन्हाईयाँ, चारों सिम्त घेरीं मेरी।
न जाने कैसा ये आलम, न जाने कैसा ये मंज़र,
ख़ुशी की तलाश में, ये आँखें ही बिखेरीं मेरी।
वफ़ा की उम्मीद थी जिनसे, वो बे-वफ़ा निकले,
कहानी इश्क़ की, ख़्वाबों में ही उकेरीं मेरी।
न कोई अपना है, न कोई सहारा इस जहाँ में,
परेशानियों की गर्दिश ने, साँसे ही जकड़ीं मेरी।-
कभी जो था मेरा, वो अब खो गया,
अधूरा इश्क़ दर्द बनकर रह गया।
दिल में बसी थी जो उसकी बात,
अब तो बस एक धुंधली सी याद।
ज़िंदगी की किताब के पन्ने पलटते रहे,
मगर उसका ज़िक्र हर पन्ने पर मिलता रहा।
कभी हँसी, कभी ग़म, कभी ख़ुशी, कभी दर्द,
ये इश्क़ भी क्या अजीब खेल खेलता रहा।
चाहत थी उसकी, चाहत है उसकी,
मगर नसीब में जुदाई लिखी थी।
अब तो बस यादें रह गई हैं,
जिनको सीने से लगाए जीती हूँ।
दिल करता है पुकारूँ उसे,
मगर लबों पर खामोशी सी है।
कैसे कहूँ उसे, कि अब भी चाहती हूँ,
जबकि वो किसी और का हो गया।
अधूरा इश्क़ दर्द देता है,
मगर जीना तो है अब इसी दर्द के साथ।-
“ज़िन्दगी और मोहब्बत”
मिले जिस रास्ते के मोड़ पर थे एक दूजे के अजनबी।
नज़रों के मिलते ही शुरू हो गई अपनी कहानी।।
देख तेरी मासूमियत और सादगी दिल पर छा गई दीवानागी।
ये मेरा दिल मोहब्बत में करने लगा तेरी ही बंदगी।।
किया इज़हार–ए–मोहब्बत अपनी ही जुबानी।
ज़िन्दगी और सांसों में आ गई हमारे नई ताज़गी।।
तेरे इश्क़ का नशा ऐसा चढ़ा मोहब्बत की आ गई आवारगी।
ज़िन्दगी में शामिल हुए ऐसे लगा जैसे मिल गई खुदा की मेहरबानगी।।
साथ यूँही बना रहे हमारा उम्र बाहर ना आए कभी एक दूजे के बीच नाराज़गी।।
हो गर कभी एक दूजे से जुदा तब, जब दे खुदा हमारी रवानगी।।-
“उम्मीद”
प्यार में खाए धोखा टूटा दिल
अपना दर्द का दवा ढूँढा करता है।।
दिल के टूटे टुकड़े अपना
वजूद तलाश करते हैं।।
बिखरे ख़्वाब देख कितने रोई हैं आँखें
उसका हिसाब ये दिल मांँगता है।।
जितना खोया है तुझे पाने में
वो वक्त मेरी आत्मा वापस चाहती है।।
एक उम्मीद बार बार आ कर
अपने टुकड़े तलाश करता है।।
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“वात्सल्य प्रेम”
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पथ निहारे रस्ता देखे
अधीर मन से आज भी मेरी मांँ
कोई नहीं इंतजार करता ऐसा मेरा
जैसा करती आज भी मेरी मांँ
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