कर में सुरभित सुमन,
नयन में प्रतीक्षा,
थोड़ी विकलता
थोड़ी तितिक्षा।।
तनिक पुलकित
तनिक विस्मित
तनिक कम्पित
तनिक सस्मित।।
अग-डग पर,
अब झलक दे साँवरे
तके अपलक
बिछा पलक पाँवड़े।।-
अभी अजन्मी नन्ही कलिका,
मैं भी खिलना चाहती माँ।
क्यों जग निर्ममता से कुचले,
तुझसे मिलना चाहती माँ।
क्यों समझे जग मुझे पराई?
आँसू नयनों में समोती हूँ।
वे कुल का दीपक कहलाते,
मैं भी तो कुल की ज्योति हूँ।
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पूर्ण हो सकल मनोकामना,
माँ मानसी का आशीष हो,
अधर सदा सस्मित रहे,
मकरंद सम महकते रहो।
कीर्ति का वितान हो,
चहुँ-ओर गुणगान हो,
परस न हो कष्ट का,
कुंदन सम दमकते रहो।
अद्भुत कला-कौशल औ',
अद्भुत तुम्हारी लेखनी,
उन्नति के अम्बर पर सदा,
"मयंक" सम चमकते रहो।
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षोडशों कलाएँ चन्द्रमा की
सोलह श्रृंगार बन सज्जित हैं
विभावरी स्तब्ध-सी लख रही
सारंग भी स्वयं पर लज़्ज़ित है।
सरसिज सम सुभग सुंदर नयन
सर में निलाम्बुज सम भासित है
लखें कि लिखें रूप माधुरी?
लेखनी मौन सौंदर्य अपरिभाषित है।-
जब मिलेंगे ना हम दुनिया की बज़्म में,
ढूँढ़ना हमको तब हमारी ही नज़्म में।-
प्रसन्नता में रुई से भी हल्के
प्रतीक्षा में रुद्र के धनु से भी भारी
सन्ताप में बड़वाग्नि सम तप्त
अश्रु मात्र नयन जल नहीं....
ये हृदय के सन्देशवाहक हैं
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ये बरसात का मौसम, ये दिलकश वादियाँ सुहानी,
ये बूँदों की सरगोशियाँ, छेड़ती रूमानी-सी कहानी।-
माँ दुर्गा की तरह ह्रदय बने ज्योतिर्मय और निर्भय,
हो प्रखर सबलता व्याप्त, निर्मुक्त हो सकल संशय,
माधुर्य, ममत्व, मृदुता की सुवास, रहे सदैव अक्षय,
अत्याचार का प्रतिकार कर, दुष्टों पर प्राप्त करे जय।-
स्वयं में पूर्ण
एक दुर्लभ एकमुखी रुद्राक्ष
सितारों के मध्य तुम हो
बिल्कुल "मयंक" से
"औघड़" के नाम
"अनगढ़" का पत्र😊-