QUOTES ON #SATH_NAHI_TU

#sath_nahi_tu quotes

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7 SEP 2023 AT 1:00

- 17 (एक साथ) -
है सत्रह पर एक सात नहीं, इक साथ बहुत है।
वो साथ नहीं, एक सात ही लेकिन, खास बहुत है।
एक मिल जाए जो साथ तेरा, वो बात अलग है।
जो इक-इक करके बात बने, जज़्बात अलग हैं।
वो मुड़ के भी ना देखे तुम, अंदाज गजब है।
तुम चुरा के नजरें देख रहे हो,
आंखे उससे फेर रहे, क्या बात अदब है।
है सत्रह पर एक सात नहीं, इक साथ बहुत है।

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5 JUN 2024 AT 1:00

बेधड़क चले शमशीर कलम के,
कि लहू भी ना बहा,
और वो प्यारे, मौत को हो गए।

वो शब्द, तीखे थे बहुत।
ना उनको लगे, ना उनके हुए।
कमबख्त, वापिस हमारे हो गए।

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3 JAN 2024 AT 7:27

नमन कर खुदा,
हम वतन कर आए।
चल रहे थे कदम, बदन,
हम जख्म कर आए।
और मिली इक बूंद मोहब्बत
कतरा इश्क का, कफन,
हम दफ़न कर आए।

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2 MAY 2024 AT 1:04

वो क्यों, दूर मुझसे है खड़ी, जो साथ मेरे है बढ़ी!
वो हाथ जिसके हाथ में था, साथ मेरे क्यों नहीं!
वो जो रास्ते कांटों तले, क्यों फूल बन बरसे नहीं!
वो एक पहर का था समय, अब क्यों कभी रुकता नहीं!
वो तेरे लफ्जों का था खिलना, अब शाख पर पत्ते नहीं!
वो थी समय की दास्तां, तुम भी थे मेरे दरमियां कभी।
वो स्तब्ध सा था तेरा होना, अवधारणा अब क्यों नहीं!
मंजूर थे वो रास्ते, चलना कभी जिन पर नहीं!
तुम हो पुरातन सी कला, वो हाथ अब ज़िंदा नहीं!
क्यों हो गई बेबाक सी, कानों में प्यास मेरे नहीं!
तुम थी मेरी सब कुछ मेरी, अब हो गई शमशान सी
वो है चिता जो बुझ गई, क्यों राख भी मिलती नहीं!
तुम हो धरा की वो शिला, छूकर भी जो इंसा नही!
कोशिश करूं के जोड़ दूं, जुड़ने से अब तुम खुश नहीं!
अब रह गई बस मोम सी, पिघली हुई यादें तेरी!

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26 NOV 2023 AT 21:39

बहुत देख ली मर्यादा में, रहकर हमने।
अब हम भी जख्म बनाएंगे।
तुम बने रहना पुरूषों में उत्तम।
हम तो, रावण ही कहलाएंगे।

चाहे हो तो रह भी लेंगे वर्ष 14 के,
कलयुग में कब तक खैर मनाएंगे।
गर जान भी देकर जान बचा लें,
फिर भी तो हम, रावण ही कहलायेंगे।

ना हरेंगे अबला को हम
ना पुष्पक ले आएंगे।
तुम पहन ही लेना पंख, झूठ के
तब भी हम, सच कह जाएंगे।
ना होकर रावण तब भी,
हम रावण ही कहलाएंगे।

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29 FEB 2024 AT 6:44

जच रही थी, सूरत पे उसकी
एक झलक मासूमियत की।
क्या देखा मैने, कल शाम का किस्सा,
वो भी थी उस भीड़ का हिस्सा।
नूर था उसके, चेहरे का ऐसा,
लग रहा था, बिलकुल तेरे जैसा।
हुबहू था बालों का ढंग वो,
हल्के काले से घुंघराले,
मूंद के पलकें देखा जो हमने
था एक सपना, तुझको पाने जैसा।
कल शाम का किस्सा......

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5 SEP 2023 AT 7:05

भाव हो, भोर हो, हो तुम्ही सांझ भी।
जीवन तो नित पर्यंत है, पर हो तुम्ही प्रयाण भी।
प्रारब्ध का प्रमाण तू, हो तुम्ही उद्विग्‍नता।
मुख़्तलिफ़ रास्तों पे मिले, तुम हो वही अनजान भी।
चंद लम्हों में गुजरा वक्त जो, उसका तुम्ही बयान भी।
दरख़्त को लगा आलिंगन, गौरा का तुम प्रमाण भी।
भाव हो, भोर हो, हो तुम्ही सांझ भी।
हो तुम्ही सांझ भी। हो तुम्ही प्रयाण भी।

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10 JUL 2024 AT 20:09

राहों पे चलना आसान होगा, फूल जो कांटे बने।
हो इजाज़त तोड़ लूं, एक फूल तेरे बाग से।
बाग से फिर वो लगेगा, सेज पे माशूक के।
ले चलेगा वो मुझे, फिर दूसरी दुनिया तले।
कांधों पे उसके सेज मेरी, कुछ अधूरा सा हूं मैं।
नाराज है वो इस तरह, क्यों सेज पे पड़ा हूं मैं?
मुमकिन ना है कुछ बोल दूं, वो राज दिल के खोल दूं।
अब बस मौन सा हूं मैं पड़ा, ना साथ तेरे हूं खड़ा।
जलने लगी चिता भी अब, क्यों लफ्ज़ तेरे ना खुले?
क्यों होंठ तेरे है सिले! क्यों होंठ तेरे है सिले!

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11 FEB 2024 AT 14:48

शहर बदला, नजारे बदले
समंदर ने अपने किनारे बदले।
मांझी ने कस्ती को एक छोर पे क्या रोका
आरोही के दस्तूर हजारों निकले।
और गुज़र गया एक बरस पूरा उनका,
याद उनको भी ना आई,
तो हमने भी मंजर सारे के सारे बदले
शहर बदले नजारे बदले।
समंदर तो खारा था ही,
वो नदी के छोर भी बिल्कुल तुम्हारे से निकले ।
शहर बदले नजारे बदले।
पराए तो खैर पराए थे,
देख तुम्हे यहां तो, अपने भी सारे के सारे बदले।

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14 JAN 2024 AT 19:49

धुंध ने ओढ़ लिया,  कोई नजर नहीं आता।
दूर तक देखा शहर तुम्हारा, शमशान, कोई नजर नहीं आता।

तुम आकर ढक लो इन पलकों को,
सर्द में, तेरी हथेली से गर्म कुछ और असर नहीं कर पाता।

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